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________________ ४४२ अध्यात्म-कल्पद्रुम सभी भूत प्राणियों को इन्द्रियां रूपी चक्षु है; देवों को अवधि ज्ञान रूपी चक्षु है; केवल ज्ञानी मुक्त आत्माओं को सर्वतः चक्षु है और मुमुक्षु को शास्त्ररूपी चक्षु है । (३, ३४) सभी पदार्थों का (गुण-पर्यायों सहित) विविध ज्ञान शास्त्र में है। मुमुक्षु शास्त्ररूपी चक्षु के द्वारा उनको देख सकता है या जान सकता है । (३, ३६) जिसकी श्रद्धा शास्त्रपूर्वक नहीं है, उसके लिए संयमाचरण संभव नहीं है और जो संयमी नहीं है, वह मुमुक्षु कैसे हो सकता है ? . (३, ३६) श्रद्धा के बिना कोरे शास्त्र ज्ञान से मुक्ति संभव नहीं है; उसी प्रकार से आचरण के बिना मात्र श्रद्धा से भी कुछ नहीं होने वाला है। (३, ३७) जिसे देहादि में अणु जितनी भी आसक्ती है, वह मनुष्य चाहे सभी शास्त्र क्यों न जानता हो फिर भी मुक्त नहीं हो सकता है। (३, ३९)
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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