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________________ सुभाषित ४ श्री दशवैकालिक सूत्र के छायानुवाद "समोसांझनो उपदेश" में से अनुवादित धर्म परम मंगल है । अहिंसा, संयम और तपरूपी धर्म में जिसका मन सदा लगा हुवा है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। . (१-१) __ जो मनुष्य संकल्पों के वशीभूत होकर, पद पद पर थक कर बैठ जाता है तथा कामों का निवारण नहीं करता है वह श्रमणपन कैसे पाल सकता है ? (२-१) तप के द्वारा शरीर को कसकर सुकुमारता दूर करो। इस प्रकार से जिसने कामों को जीता है उसने दुःख समुद्र को भी जीत लिया समझना चाहिए । जिसने पदार्थों के प्रति राग द्वेष दूर किया है वह इस संसार में सुखी होता है । (२-५) कैसे चलना, कैसे खड़ा रहना, कैसे बैठना, कैसे सोना, कैसे खाना और कैसे बोलना जिससे पाप कर्म न बंधे ? (५-७) प्रयत्नपूर्वक (जीवों को बचाते हुए) चलना, प्रयत्नपूर्वक
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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