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________________ सुभाषित संग्रह ४११ के पश्चात दूसरा कोई रास्ता नहीं रहेगा तब प्रमत्त, हिंसक और प्रयत्न नहीं करने वाले मनुष्य की क्या दशा होगी, उसका विचार कर। . (४-१) सोते हुओं के बीच में जागते रहना चाहिए। तीव्र बुद्धिमान पंडित को आयुष्य का विश्वास नहीं करना चाहिए । काल निर्दय है और शरीर निर्बल है अतः भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त रहना चाहिए। . (४-६) वाणी की चतुराई (मृत्यु से) बचा नहीं सकती है, विद्या का शिक्षण भी किस तरह बचा सकता है ? अपने आपको पण्डित मानने वाले मूर्ख लोग पाप कर्मों में डूबे रहते हैं। (६-१०) दुर्जय संग्राम में लाखों योद्धाओं को (कोई) जीते, उसकी अपेक्षा अकेला अपने आपको जीते तो यह विजय उत्तम है। (६-३४) अपने स्वयं के साथ लड़ना चाहिए। (अन्य के साथ) बाहर वालों के साथ लड़ने से क्या लाभ ? अपने आत्म बल से अपने आपको जीतने वाला सुखी होता है। (६-३५) ___ पांच इन्द्रियां, क्रोध, मान, माया और लोभ, तथा सबसे अधिक दुर्जय ऐसा अपना मन ; ये जीते गये तो सब जीते गए। ___ हर महीने महीने लाखों गायों का दान देने वाले की अपेक्षा कुछ भी दान न देने वाले संयमी का संयमाचरण श्रेष्ठ है। (६-४०)
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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