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________________ अध्यात्म-कल्पद्रुम चलाना था । प्रतिबिंब देखकर पुतली की बाईं प्रांख में तीर सभी कुमार असफल रहे । उन २२ का भी यही हाल हुवा । राजा इन्द्रदत्त को बहुत दुःख हुवा तब मंत्री ने सुरेंद्रदत्त का हाल कहकर उसे वेध करने की आज्ञा दी। सुरेंद्रदत्त सफल हुवा और वरमाल उसी को पहनाई गई। सुरेंद्रदत्त जैसा कोई भाग्यशाली प्राणी उस पुतली की प्रांख में तीर लगा सका यह जितना कठिन है उससे भी कठिन तो यह है कोई भाग्यहीन प्राणी मानव भव को खोकर फिर पा सके । ४०८ (८) कूर्म - चंद्रदर्शन - एक सरोवर में रहने वाले किसी कछुए ने एक बार पानी के ऊपर जमी हुई कांजी में हवा के जोर से छेद होने पर पानी के ऊपर गर्दन निकाल कर पूर्णचंद्र को देखा जिससे उसे अति आनंद हुआ। उस आनंद में सम्मिलित करने के लिए अपने कुटुम्बियों को लेने के लिए उसने पानी में डुबकी लगाई परन्तु जब वह सबको लेकर ऊपर आया तो कांजी के जाड़े स्तर में वह छेद नहीं मिला । पूर्णिमा की रात्री, कांजी का फटना और उस कछुए की उपस्थिति ये सभी योग मिलने मुश्किल हैं । उन सबको चंद्रदर्शन दुर्लभ हो गए । कदाचित इस प्रकार के चंद्र के दर्शन उस कछुए को हो परन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्य भव को हार जाता है उसे फिर से वह प्राप्त नहीं कर सकता है । ( ६ ) युग ( समिला ) - पूर्व समुद्र खूंटी) डालें और पश्चिम समुद्र में में शमी ( लकड़े की युग ( जूड़ा - बैलों के
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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