SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मनुष्य भव की दुर्लभता के दस दृष्टांत (१) चोल्लक (भोजन)-चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त ने एक ब्राह्मण को प्रसन्न होकर कहा कि "तुझे जो चाहिए सो मांग ले" । ब्राह्मण ने अपनी स्त्री की सलाह से यह मांगा कि, "आपके राज्य में हरेक घर में मैं बारी बारी से भोजन करूं।" चक्रवर्ती ने यह स्वीकार कर वैसा प्रबंध कर दिया। __ पहले ही दिन उस ब्राह्मण ने चक्रवर्ती के यहां भोजन किया और जीम कर एक स्वर्ण-मोहर प्राप्त की, पश्चात वह एक लाख बाणवे हजार रानियों के यहां जीमा, इसी प्रकार से उसे छः खण्ड में हरेक के यहां जोमना था। परन्तु प्रथम दिन के भोजन में जो स्वाद उसे मिला था वह फिर कभी नहीं मिला। उसकी उत्कंठा लगी हुई थी कि कब छः ही खण्डों के तमाम शहरों के सब ही घरों में जीम चुकू और कब चक्रवर्ती के यहां मेरी बारी फिर से आवे। यह बनना जैसे दुर्लभ है वैसे ही मानव-जीवन मिलना दुर्लभ है। शायद किसी भी तरह से वह ब्राह्मण प्रथम दिन जीमे हुए भोजन को दुबारा पाए, परंतु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्य भव पाकर उसे खो देता है वह उसे दुबारा फिर कभी भी नहीं पा सकता। (२) पासा-चंद्रगुप्त मौर्य जब राज्यासन पर आरूढ़ हुवा तब खजाना खाली हो गया था। बुद्धिनिधान जैन ब्राह्मण (माहण-महात्मा) चाणक्य ने एक युक्ति की उसने कल पुर्जी
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy