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________________ ( २ ) विमान के इस युग में, एटमबम के इस जमाने में भौतिक सिद्धियों पर मगरूर रहने वाले लोग हंसकर उस पुल पर से पार होने वाले लोगों की मज़ाक करते हैं । वे कहते हैं कि आज ये तुम्हारे पुल और तुम्हारी मुसाफिरी की ये झंझटें निकम्मी हैं । देखो ! हमारे विमान देखो ! 1 ये कहते हैं कि छोड़ो ये तुम्हारी आत्मा की अध्यात्म की व अगम्यवाद की बातें । संसार तो मिष्टता का मधुकुँज है और इसी मधु की तुम निंदा करते हो ? स्वर्ग, स्वर्ग करते हो ! तो फिर स्वर्ग जैसी इस पुथ्वी का ही स्वीकार करो न । पृथ्वी के सुख में ही वृद्धि करो न । ये कहते हैं पृथ्वी पर धान्य के ढेर हैं, दूध है, दही है, पय है, दूसरी भंभट छोड़कर उठो न ! भोगा जितना अपना । ये कहते हैं धरती पर महल है, धन-दौलत, दास-दासी, स्वजन- कुटुम्बी बंदे । रात को, विलास पूर्ण निद्रा से बिताओ । भवन है । नसीब से मिले हैं। मौज करो और दिन को मौज से जवानी है, नसों में उत्साह है, उमंगों की लहरें उठती हैं। हाथ आकाश को बाथ में भरने के लिए और पैर पृथ्वी को नापने के लिए आतुर हो रहे हैं । जीवन की बसंत लूट लो । रोने पीटने के लिए बुढ़ापा कहां नहीं है ? 1 तुम भय, भय करते हो, परन्तु मनुष्य के सिर पर धन का, यौवन का, समाज का, राज का, बलवान का भय क्या नहीं है ? डरते हुए को अधिक डराने की यह जरूरत कैसी ?
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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