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________________ ३७४ अध्यात्म- कल्पद्रुम जीत सकता है लेकिन एक दुबली पतली नारी द्वारा पराजित होता है । इसीलिए सब तपों में ब्रह्मचर्य को सर्वश्रेष्ठ बताया है । इसका पालन तभी हो सकता है जब कि नौ वाड़ों से इसकी रक्षा हो जिनका उल्लेख यति शिक्षा के पाठ में चरणसित्तरी में किया है । इस विषय के लिए "इन्द्रियपराजय शतक, शृंगार वैराग्य तरंगिणी, शीलोपदेशमाला आदि पुस्तकें पढ़ें । समुदाय से पांचों इन्द्रियों का संवरोपदेश विषयेंद्रिय संयोगाभावात्के न संयताः । रागद्वेषमनोयोगाभावाद्य तु स्तवीमि तान् ॥ १८ ॥ अर्थ - विषय और इन्द्रियों के संयोग न होने से कौन संयम नहीं पालता है ? परन्तु राग-द्वेष का योग जो मन के साथ नहीं होने देते हैं उन्हीं की मैं स्तुति करता हूं ।। १८ ।। अनुष्टुप विवेचन - मधुर स्वर, सुन्दर रूप, सुगंधी पुष्प, मीठा भोजन और सुकोमल स्त्री ये पाँच विषय हैं यदि ये इन्द्रियों को न मिलें तब तक तो जबरन संयम है ही, जैसे "वृद्धानारी पतिव्रता", परंतु जो इन सब विषयों के सुलभ होने पर भी इन्द्रियों को उनमें जाने से खींचते हैं, वही स्तुति के पात्र हैं । अच्छे लगने वाले विषयों में राग और बुरे लगने वाले विषयों में द्वेष जो नहीं करते हैं वही संयमी हैं कोई वस्तु अच्छी है या बुरी इसका आधार मन पर है, मन मान लेता है वह वैसी ही प्रतीत होती है । जिस वस्तु को जैसी । संसार के विषयों
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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