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________________ ३७२ अध्यात्म-कल्पद्रुम त्याग नहीं करता है ? परन्तु यदि तुझे तप का फल पाना हो तो इष्ट स्पर्शों का मन से त्याग कर ॥ १६ ॥ अनुष्टुप् विवेचन-संसार में भटकने वाली यही इन्द्रिय सबसे अधिक कष्टकर है । सुन्दर स्त्री या बालक के गाल का स्पर्श करने पर भी मन में राग न उत्पन्न हो और चमड़ी पर कोढ़ आदि होने पर अथवा मच्छर या बिच्छू के डंक लगने पर या सर्दी गर्मी के अनिष्ट स्पर्श से मन में द्वेष भाव न उत्पन्न हो यही स्पर्शेन्द्रिय का संयम है, बाकी सब तो निर्थक बाते हैं। हाथी को पकड़ने वाले पहले खड्ढा खोद कर उस पर घास बिछा देते हैं और उस घास पर कागज की हथिनी खड़ो कर देते हैं, वह काम लोलुपी हाथो स्पर्शेन्द्रिय की लिप्सा का मारा वहां जाता है उस खड्ड में गिरकर बंधन को पाता है । कामांधो नैव पश्यति । परस्त्रीगामी व वैश्यागामी लंपट पुरुषों की दुर्दशा के कई दृष्टांत शास्त्रों में वर्णित हैं । गुह्येन्द्रिय-संयम बस्तिसंयममात्रेण, ब्रह्म के के न बिभ्रते । मनः संयमतो धेहि, धीर चेत्तत्फलार्थ्यसि ।। १७ ।। अर्थ-मूत्राशय के संयम मात्र से कौन कौन संयम धारण नहीं करते हैं ? हे धीर ! यदि तुझे ब्रह्मचर्य के फल की इच्छा हो तो मन का संयम करके ब्रह्मचर्य का धारण कर ॥ १७ ॥ अनुष्टुप विवेचन स्पर्शेन्द्रिय संयम के अनुसंधान में गुह्यद्रिय
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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