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________________ (४०) "जैसे फांसी की सजा पाये हुए चोर की अथवा वध-स्थल पर ले जाते हुए पशु की मृत्यु धीरे-धीरे नजदीक आती जाती है, उसी प्रकार से सब को मृत्यु नजदीक आती जा रही है तो फिर प्रमाद क्यों?" (पृष्ठ १२५-२६) "कषायों ने तुझ पर कौन सा उपकार किया है और कब किया है, जिससे तू हमेशा उनका सेवन करता रहता है ?'' (पृष्ठ १३७) "जिस प्राणी का चित्र विकल्पों से मारा गया है, उसको जप, तप आदि धर्म अपना फल नहीं देते ।" . (पृष्ठ १८८) ___"दूसरे मनुष्य के द्वारा की गई अपनी प्रशंसा सुन कर जिस तरह तू प्रसन्न होता है, वैसे ही प्रसन्नता यदि शत्रु की प्रशसा सुन कर होती हो, एवं जैसे स्वयं की निन्दा सुन कर तुझे दुःख होता है, वैसे ही शत्रु को निन्दा सुन कर तुझे दुख होता हो तो वास्तव में तू विद्वान है" (पृष्ठ २४२) 'एक छोटा-सा दीपक भी अंधकार का नाश करता है, अमृत की एक बून्द भी अनेक रोगों को हर लेती है, अग्नि की एक चिनगारी भी घास के ढेर को भस्म कर देती है, उसी प्रकार धर्म का अल्प अंश भी यदि शुद्ध हो तो पाप का नाश कर देता है" (पृष्ठ २५०) इस प्रकार की विचार-मुक्ताओं से यह पुस्तक भरी पड़ी है। - हमें विश्वास है कि इस उपयोगी पुस्तक का सर्वत्र स्वागत होगा और इसके पठन-पाठन से पाठक अपने को लाभान्वित करेंगे। ७/८, दरियागंज, दिल्ली १५ अक्तूबर १९५८ -यशपाल जैन
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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