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________________ मिथ्यात्वनिरोध-संवरोपदेश बिना कारण न बोलना, गंभीरता रखना एवं बोलते समय भी विचार करके, प्रमाण सहित और आवश्यकता हो उतना ही बोलना यही वाणी का संयम कहलाता है। निरवद्य वचन-वसु राजा निरवद्य वचो ब्रू हि, सावद्यवचनैर्यतः। प्रयाता नरकं घोरं, वसुराजा दयोद्रुतम् ॥ ७ ॥ अर्थ-तू निरवद्य (निष्पाप) वचन बोल, कारण कि सावध वचन बोलने से वसु राजा एक दम घोर नरक में गए हैं ॥ ७ ॥ .. . अनुष्टुप् विवेचन तू निरवद्य (निष्पाप) वचन बोल, निरवद्य का अर्थ सत्य, प्रिय और प्रमाणित बोलना होता है, वचन सत्य के साथ ही प्रिय भी होना चाहिए, हितकर होना चाहिए । एवं सर्वाश से सत्य होना चाहिए । “नरो वा कुंजरो वा" की तरह से सुनने वाले को भ्रम में डालने वाला नहीं होना चाहिए इतने से भ्रामक वचन से धर्मराज युधिष्ठिर भी धर्म से भ्रष्ट हुए कहलाए। सावध वचन बोलने से भाषा पर अंकुश नहीं रहता है, दूसरों पर वजन नहीं पड़ता है बात का असर नहीं होता है, एवं मन में क्षोभ रहता है, तथा स्वयं की कीमत घटती है, लोग वाचाल कहकर वक्ता की बात की परवाह नहीं करते हैं । सावध वचन बोलने से वसु राजा जिसका सिंहासन स्फटिक रत्न से बने होने के कारण जमीन से ऊंचा रहता दिखता था केवल वचनबद्ध होकर अपने
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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