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________________ अध्यात्म- कल्पद्रुम प्रायः चातुर्मास करने की स्थिरता की अवधि चार मास की हद को छोड़कर ८ मास या १० मास तक पहुंच गई है। खेद है कि कहा किसको जाय ! जो उपदेशक, गीतार्थ प्राचार्य कहे जाते हैं वे भी इसी रोग के शिकार बने हुए हैं परिणामतः एक ही प्रांत में साधुओं का जमाव है वही प्रांत (गुजरात) उनका विहार व चातुर्मास का केंद्र बना हुवा है । बड़े बड़े शहरों में ( अहमदाबाद, बंबई, पालीताणा ) उनका जमाव नजर आता है चाहे वहां उनकी अवज्ञा ही क्यों न होती हो, चाहे वे समाज को भाररूप क्यों न दिखते हों, चाहें उनके कारण से गृहस्थों को विपरीत विचारणा में क्यों न जाना पड़ता हो, चाहे उनकी स्थिरता से दूसरे साधुनों को स्थान का अभाव ही क्यों न होता हो । इन सब बातों की परवाह आज किसे है । आहार विहार की सुगमता से वे लाचार हैं । विशेषतः दैनिक व्यवहार के साधन या दवा आदि उन्हें सुखपूर्वक मिल जाने से या अंध श्रद्धालुओं की भक्ति के कारण वे मधुमक्खी की तरह अपने छत्तों रूप शहरों को छोड़ना पसंद नहीं करते हैं । उनके ऐसे बर्ताव से अन्य प्राँत धर्म से वंचित हैं । वहां श्रावकों में रात्रि भोजन तथा कंदमूल का. खूब प्रचार है और पतन की पराकाष्ठा यहां तक पहुंच गई मंदिरों के द्वेषी बन गए हैं । भूमि (मेवाड़) में विचरे थे आज वहां की दुर्दशा देखकर बड़ा दुख होता है । अतः दृष्टि राग से बचने के लिए नवकल्पी विहार अत्यंत आवश्यक है जो कल्याण का मार्ग है । है कि वे जिन देव की मूर्ति व इसी शास्त्र के प्रणेता जिस ३३४
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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