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________________ (३६) लेकिन अब स्थिति भिन्न है । विज्ञान की कृपा और यातायात के साधनों के विकास से आज दुनिया बहुत ही छोटी हो गई है और कोई भी राष्ट्र अपने आप में सीमित होकर नहीं रह सकता। मानना होगा कि पारस्परिक सम्पर्कों से हमारे देश को एक ओर अपने विकास का लाभ मिला तो दूसरी ओर एक हानि भी हुई । उसका झुकाव पश्चिमो विचार-धारा की ओर हो गया और वह जोवन की सफलता का मूल्यांकन सांसारिक उपलब्धियों के आधार पर करने लगा । शायद यह स्वाभाविक था, क्योंकि लम्बी दासता के कारण भारत की चेतना कुंठित हो गई थी और वह भूल गया था कि उसकी भूमि ने भौतिकता की उपासिका योग-प्रधान संस्कृति को कभी महत्व नहीं दिया, बल्कि सदा उसके विरुद्ध ही अपना स्वर ऊंचा किया। . इसमें कोई संदेह नहीं कि अब हम पिछले ज़माने में नहीं जा सकते। आज परिस्थितियां बदल गई हैं और नये मूल्यों से एकदम इन्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यदि हम अपनी विशेषताओं को छोड़ देंगे तो हम उसी पंक्ति में जा खड़े होंगे, जिसमें आज के पश्चिमी देश खड़े हैं और बड़ी अशांति अनुभव कर आज जब कि भौतिक आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ रहा है और हमारा जीवन अधिकाधिक बहिर्मुखी होता जा रहा है,
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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