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________________ ( ३४ ). जैनों का महान संस्कृत साहित्य यदि अलग कर दिया जाय, तो मं नहीं कह सकता कि संस्कृत साहित्य की फिर क्या दशा हो । जैसे २ मैं इस साहित्य को विशेष रूप से जानता जाता हूँ वैसे वैसे मेरा आनन्द बढ़ता जाता है, इसको विशेष रूप से जानने की इच्छा होती जाती है । - डा० हर्टल जर्मन विद्वान महावीर ने १२ वर्ष के तप और त्याग के पीछे अहिंसा का खूब संदेश दिया । उस समय देश में खूब हिंसा होतो थी । हरेक घर में यज्ञ होता था । अगर उन्होंने अहिंसा का उपदेश न दिया होता तो आज हिन्दुस्तान में अहिंसा का नाम भी न लिया जाता । -धर्मानन्द कौसम्बी ई० स० पूर्व के प्रथम सैके में जैनों के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव की पूजा करने वाले लोग थे ऐसी प्रतीति होती है । इसमें संदेह नहीं कि श्री वर्षमान अथवा श्री पार्श्वनाथ के पहले भी जैनधर्म प्रवर्तता था यजुर्वेद में इन तीन तीर्थकरों के नाम आते हैं। श्री ऋषभदेव, श्री अजितनाथ, और श्री अरिष्टनेमि । भागवत पुराण में उल्लेख है कि जैन धर्म के आद्यस्थापक श्री ऋषभदेव थ । - डा० सर्वपल्ली राधाकृष्ण मैं अपने देश वासियों को दिखाऊंगा कि कैसे उत्तम नियम और ऊंचे विचार जैन धर्म और जंनाचार्यों में हैं । जैन का साहित्य बौद्धों से बहुत बढ़ कर है और ज्यों २ मैं जैनधर्म और उसके साहित्य को समझता हूं त्यों त्यों उनको अधिक पसंद करता हूं। जैनधर्म में व्याप्तमान हुए सुदृढ़नीति प्रमाणिकता के मूल तत्व, शील और सर्व प्राणियों पर प्रेम रखना- इन गुणों की मैं बहुत प्रशंसा करता हूं। जैन पुस्तकों में जिस अहिंसा धर्म की सिफारिश की और शिक्षा दी है उसे में यथार्थ में श्लाघनीय समझता हूं । - डा० जीहन्नेस हर्टल, जर्मनी
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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