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________________ यतिशिक्षा २८७ विवेचन–जनता भोली है और वेष पर विश्वास करती है । तेरे वेष से मालूम होता है कि तू उपकारो है, निष्कपट हे, अहिंसक है दोष से दूर रहने वाला अपरिग्रही है, एवं केवल आत्मार्थी है अतःतेरी आवश्यकताओं को बिना ही तेरे कहने के वे पूरी करते रहते हैं । तुझे ठहरने को स्थान देते हैं, पहनने को वस्त्र देते हैं, खाने को आहार देते हैं और सेवा करने के लिए अपने संतान रत्न भी देते हैं। इतना होने पर भी तू निर्गुणी, विषयी, कषायी, वाचाल व पेट भरा है तो साधु के बजाय तू स्वादु है और तेरी गति ठग जैसी होगी अर्थात् सद् गति के बजाय दुर्गति होगी, तेरा वेष तुझे बचा नहीं सकेगा। यतिपन का सुख और कर्तव्य नाजीविका प्रणयिनी तनयादिचिता, नो राजभीश्च भगवत्समयं च वेत्सि । शुद्ध तथापि चरणे यतसे न भिक्षो, तत्ते परिग्रहभरो नरकार्थमेव ।। ६ ।। अर्थ-तुझे आजीविका स्त्री, पुत्र आदि की चिंता नहीं है न राज्य तरफ से भय है। भगवान के सिद्धान्त तूं जानता है अथवा सिद्धांत की पुस्तकें तेरे पास हैं फिर भी हे यति ! यदि तूं शुद्ध चरित्र के लिए प्रयत्न नहीं करता है तो तेरे पास रही हुई वस्तुओं का वजन (परिग्रह) नरक के लिए ही है॥ ६ ॥ वसंततिलका
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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