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________________ धर्मशुद्धि २४१ गाली देगा तो गाली मिलेगा और प्रशंसा करेगा तो प्रशंसा मिलेगी। अतः मात्सर्य छोड़कर परगुणों की प्रशंसा कर । अपनी प्रशंसा या निदा की परवाह न करना जनेषु गृहृत्सु गुणान् प्रमोदसे, ततो भवित्री गुणरिक्तता तव । गृह्णत्सु दोषान् परितप्यसे च चेद्, भवन्तु दोषास्त्वयि सुस्थिरास्तत ___ अर्थ जब दूसरे मनुष्य तेरे गुणों की प्रशंसा करते हों तब तू यदि खुश हो जाता है तो तेरे में गुण रहितता पा जाएगी (दोषी बन जाएगा) और यदि वे तेरे दोषों को देखें या कहें तब तू क्रोधित हो जाता है तो वे दोष तेरे में सुदृढ़ हो जाएंगे ॥ ४॥ वंशस्थ विवेचनजैसे किसी भी वस्तु से भरे हुए पात्र में से वह वस्तु ले ली जाती है तो वह पात्र खाली हो जाता है वैसे ही यदि तेरे में गुण हैं और लोग तेरे गुणों की प्रशंसा करते हों तब यदि तू गर्व का अनुभव कर खुश हो जाता हो तो समझ ले कि वे गुण तेरे में से खींच लिए गए हैं, तेरा वह गुण रूप पात्र खाली हो गया है और जब तेरे दोषों के लिए लोग निंदा करते हों और तू क्रोधित हो गया तो निश्चित जान ले कि वे दोष तेरे में और दृढ़ हो गए, उनकी जड़ और गहरी हो गई । यदि तू दोष सुनकर आत्म चिंतन करता है कि ये लोग जो कह रहे हैं वह सत्य है या झूठ ? यदि सत्य है तो उन दोषों को दूर करने का उपाय कर और यदि झूठ है और तू उनको शांति से सहन करता है तो समझ कि तू अग्नि परीक्षा में सफल हुवा, तेरा धैर्य व सहनशीलता का २६
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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