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________________ २२४ अध्यात्म-कल्पद्रुम कुछ ऐसा कर कि जिससे तुझे इच्छित फल की प्राप्ति हो ! तेरे लिए उसकी प्राप्ति का यही योग्य अवसर है ! ॥ १६ ।। वंशस्थ । विवेचन–सुख की प्राप्ति के लिए तुझे ऐसे सुयोग (पंचेंद्रियपन, आर्य क्षेत्र, मनुष्य भव, वीतराग का धर्म, सत्य उपदेशक) साधन मिले हैं अतः तुझे ऐसा (तप, संयम, धृति, व्यवहार शुद्धि, विरति) कर लेना चाहिए जिससे तेरा मनोवांछित (आत्मसुख सच्चिदानंद) प्राप्त हो । अवसर बीतने के बाद कुछ भी न होगा। सुख-प्राप्ति का उपाय धनांगसौख्यस्वजनानसूनपि, त्यज त्यजैकं न च धर्ममाहतम् । भवन्ति धर्माद्धि भवे भवेऽथितान्यमून्यमीभिः पुनरेष दुर्लभः॥१७॥ अर्थ-धन, शरोर, सुख, सगे संबंधी और यह प्राण भी छोड़ देना, परंतु एक वीतराग अहंत परमात्मा के बताए हुए धर्म को न छोड़ना, धर्म से भवोभव में ये धनादि तो मिलेंगे लेकिन इन (धनादि) से धर्म मिलना दुर्लभ है ॥ १७ ॥ __ वंशस्थ विवेचन–ोह ! मानव प्राणी मूल को न देखकर केवल डाली व पत्तों की ही रक्षा करता है, वह शरीर व उसके आनंद के साधनों को जुटाने में व्यस्त रहता है लेकिन धर्म को कुछ गिनता ही नहीं है। बिना धर्म के ये सब वस्तुएं नष्ट हो जाती हैं अतः इन सबके मूल एक मात्र धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए, अन्य सब तो इसके आधार पर ही हैं, मूल
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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