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________________ १६८ अध्यात्म-कल्पद्रुम के सब साधन मेरे साथ चलने वाले हैं वे उस दूसरी दुनियां में भी मुझे खुश रखने वाले हैं। इसे तू भूल जा । तेरे ये रेडियो के तार मृत्यु के समय के बंधन होंगे। तेरे कर्ण प्रिय वाद्ययंत्र नरक की चीत्कारों व आक्रंदों में बदल जायेंगे। तेरे सब स्वजन संबंधी मृत्यु देवी के दूत के समान नजर आवेंगे। प्रोह जब ऐसा परिणाम अवश्यंभावी है तब क्यों न तू पहले से ही सावधान हो जाता है। सुबह से शाम तक तू जिस तरह अपना समय व्यतीत करता है इसकी दशा को बदल दे और आत्म मनन कर स्वहित साधन कर ले । ___आत्मा के पुरुषार्थ से सिद्धि त्वमेव मोग्धा मतिमान् त्वमात्मन्, नेष्टाप्यनेष्टा सुखदुःखयोस्त्वम् । दाता च भोक्ता च तयोस्त्वमेव, तच्चेष्टसे किं न यथा हिताप्तिः ।। ३ ॥ अर्थ हे आत्मन् ! तू ही मुग्ध (अज्ञानी) है और तू ही ज्ञानी है; सुख की इच्छा करने वाला और दुःख पर द्वेष करने वाला भी तू ही है; और सुख दुःख के देने वाला और भोगने वाला भी तू ही है तब स्वयं के हित की प्राप्ति के लिए प्रयत्न क्यों नहीं करता है ? ॥ ३॥ उपजाति विवेचन-आत्मा में अनंत शक्ति है परन्तु अज्ञानादि के कारण कर्मों के पराधीन हुवा यह वास्तविकता को नहीं पहचान पा रहा है। अतः शास्त्रकार फरमाते हैं कि हे आत्मा तू सब कुछ करने में समर्थ है। सब प्रकार के अच्छे बुरे
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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