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________________ .१६५ शास्त्राभ्यास और बरताव शास्त्राभ्यास-उपसंहार अधीतिमात्रेण फलंति नागमाः, समीहित वसुखैर्भवान्तरे । स्वनुष्टितैः किंतु तदीरितैः खरौ, न यत्सिताया वहनश्रमात्सुखी ॥ ६ ॥ अर्थ केवल अभ्यास से ही अन्य भव में मनोवांछित फल देने में आगम फलते नहीं हैं, परन्तु उनमें बताए हुए शुभ अनुष्ठान करने से ही पागम फलते हैं; जिस प्रकार से मिश्री का भार उठाने के श्रम से ही गधा सुखी नहीं हो जाता है ॥६। वंशस्थ विवेचन मात्र अभ्यास करने से ही सुख नहीं प्राप्त होता वरन उस अभ्यास को या सीखे हुए गुणों को जीवन में उतारने से सुख प्राप्त होता है। एक विद्वान जो बहुत ही पदवियां (डिगरियां) पाए हुए हो लेकिन उसमें, क्रोध, अहंकार, बेईमानी आदि दुर्गुण हों तो वह सफलता नहीं पाता है जब कि साधारण पढ़ा लिखा एक इमानदार सरल उदार पुरुष सफलता पाता है । जो गुणों को जानता हुवा भी वैसा आचरण नहीं करता है उसकी तुलना मिश्री के बोरे से लदे हुए गधे से की गई है । गधे के लिए तो सब भार बराबर है। चाहे मिट्टी लादो, या सोना, चाहे नमक लादो या मिश्री। वैसे ही केवल अभ्यास मात्र के लिए शास्त्र पढ़ने वाले को समझना चाहिए कि इन शास्त्रों में बताए गए मार्ग के अनुसरण के बिना या अनुष्ठान के बिना ये कुछ भी फलदायी नहीं होंगे।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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