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________________ शास्त्राभ्यास और बरताव अपने आपको बड़ा भारी विद्वान मानने वाले यश के मोह में पड़कर कीर्ति की भूख मिटाते हुए प्रमादाचरण करते हैं एवं स्वमति से भिन्न मार्ग निकालते हैं व भोले जीवों को अपने पीछे नरक आदि में ले जाते हैं। जैनागमों का सहारा लेकर, उन्हें साथ साथ लिये फिरने पर भी कई मुनि उत्सूत्रपरूपणा (विपरीत अर्थ) करके मतमतांतर डालते हैं । इन्द्रियों के सुख में पड़कर उन शास्त्रों से विपरीत चलते हुए भी यशस्वी बनने का ढोंग करते हैं प्रोह उनकी परभव में क्या गति होगी? यहां ज्ञान को हीन न बता कर ज्ञान का सदुपयोग करने को शास्त्रकार ने कहा है । मुग्ध बुद्धि, विद्वान-पण्डित धन्यः स मुग्धमतिरप्युदितार्हदाज्ञारागणः यः सृजति पुण्यमदुर्विकल्पः । पाठेन किं व्यसनतोऽस्य तु दुर्विकल्प र्योदुस्थितोत्र सदनुष्ठितिषु प्रमादी ॥ ८॥ अर्थ खराब संकल्प नहीं करने वाला और अरिहंत की आज्ञा के राग से शुभ क्रिया करने वाला प्राणी यदि पढ़ने में मुग्धबुद्धि (मंद बुद्धि) वाला भी है तो भी भाग्यशाली है । जो प्राणी खराब विचार करता रहता है और शुभ क्रिया में आलसी रहता है वैसे प्राणी को अभ्यास से और पढ़ने के व्यसन से क्या लाभ है ? ॥ ८॥ वसंततिलका विवेचन-मनुष्य, बीमारी के समय ऐसे वैद्य या डाक्टर की दवा लेता है जिस पर उसे पूर्ण विश्वास होता है यह अनुभव
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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