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________________ अथाष्टम: शास्त्र गुणाधिकारः इसके पूर्व के सात अधिकारों में ममत्वमोचन और कषायत्याग तथा प्रमाद त्याग का उपदेश शास्त्रकार ने दिया है परन्तु इनका असर शास्त्र अभ्यास बिना टिक नहीं सकता है। अतः शास्त्र अभ्यास कैसा होना चाहिए और उसके क्या क्या लाभ हैं वह इस अधिकार में बताते हैं । केवल ऊपरी शास्त्र अभ्यास शिलातलाभे हृदि ते वहंति, विशंति सिद्धान्तरसा न चान्तः । यवत्र नो जीवदयार्द्रता ते, न भावनांकुरततिश्च लम्या ॥१॥ अर्थ-सिद्धान्तरूपी जल तेरे पत्थर जैसे हृदय पर होकर बह जाता है, परन्तु अन्दर प्रवेश नहीं होता है; कारण कि उसमें जीव दयारूपी आर्द्रता नहीं है और भावनारूपी अंकुरों की श्रेणी भी नहीं है। उपेंद्रवज्रा विवेचनपत्थर की शिला पर पड़ा हुवापानी निरर्थक जाता है कारण कि पत्थर में ग्रहण शक्ति नहीं है, गीलापन भी नहीं है अतः अंकुरित करने की शक्ति भी नहीं है। इसी प्रकार से जो विद्वान तो है लेकिन जिसका हृदय उस विद्या को ग्रहण किए हुए नहीं है उस पर उन शास्त्रों का कोई असर होने
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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