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________________ कषायत्याग १५१ करने के उपाय करता है। परन्तु मद्य, विषय, कषाय, विकथा और निद्रा रूपी प्रमाद चोर तेरा आत्मधन या पुण्यधन लूट रहे हैं जिससे तू बेखबर है । इन पांचों प्रमादों के कारण आत्मा अपना किया हुवा सत्कर्म हार जाता है तथा कर्मों के क्षय करने में समर्थ होता हुवा भी पंगु रहता है। अतः प्रमाद का त्याग कर। जरा नीचे देखकर चल-उधतपन का त्याग मृत्योः कोऽपि न रक्षितो न जपतो दारिद्रयमुत्रासितं, रोगस्तेननुपादिजा न च भियो निर्णाशिताः षोडश । विध्वस्ता नरका न नापि सुखिता धर्मे स्त्रिलोकी सदा, तत्को नाम गुणो मदश्च विभुता का ते स्तुतीच्छा च का ॥२१॥ ___ अर्थ हे भाई ! तूने अभी तक किसी भी प्राणी को मरने से नहीं बचाया है, न जगत की दरिद्रता दूर की है, तूने रोग, चोर, राजा आदि से होने वाले सोलह बड़े भयों का भी नाश नहीं किया है, न तूने नरक गति का नाश किया है, और धर्म द्वारा तीनों लोकों को सुखी भी नहीं किया है तो फिर तेरे में ऐसे कौन से गुण हैं जिनसे तू मद करता है ? और फिर ऐसे कोई भी काम किये बिना तू स्तुति की इच्छा भी कैसे रखता है ? (अरे कहां तो तेरे गुण ! और कितना तेरा मद ! कितनी प्रबल तेरी स्तुति की इच्छा ) ॥२१॥ विवेचन अरे भाई तू कौन से अपने बड़े कार्य से प्रशंसा की इच्छा रखता है । उपकार बहुत ही थोड़ा करके भी तू स्तुति की इच्छा रखता है यह अयोग्य है। जगत में ऐसे कई महान उपकारी हो गए हैं जिनका नाम तक हमारे सुनने में
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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