SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० अध्यात्म-कल्पद्रुम अर्थ अच्छी तरह विचार करके, मान का त्याग करके, दुराराध्य तपों का रक्षण करके क्षमा करने में शूरवीर पंडित साधु, नीच पुरुषों द्वारा किए गए अपमानों को खुशी से सहन करता है ।। ८ ।। . उपजाति विवेचन—जैसे पोला ढोल छूते ही बज उठता है व छूनेवाले को प्रकट कर देता है, तथा कांसी का पात्र जरा सी ठपक से झनझना उठता है और अपनी हल्की जातीयता को प्रकट कर देता है, वैसे ही नीच पुरुष सत्पुरुषों के पद चिह्नों पर न चलकर तुच्छता करते हुए अपने अंदर के दोषों को प्रगट कर उन साधु पुरुषों को अनेक तरह से कष्ट देते हैं। इसके विपरीत उत्तम पुरुष तो इन सबको सहन करते हैं, कई कष्टों से साधे गए तपों की रक्षा, रत्नों की तरह से करते हैं, मान का त्याग करते हैं तथा सरलता रखते हैं। अतः मान का त्याग अच्छी तरह विचरना चाहिए । संक्षेप से क्रोध निग्रह पराभिभूत्याल्पिकयापि कुप्यस्यधैरपीमा प्रतिकर्तुमिच्छन् । न वेत्सि तिर्यङ नरकादिकेषु, तास्तरनंतास्त्वतुला भवित्रीः ॥६॥ अर्थ-ज़रा से अपमान से तू क्रोध करता है और उसका बदला चाहे जैसे पाप कृत्यों से लेना चाहता है, परन्तु नरक तिर्यंच आदि गतियों में अपार, अतुल्य, परकृत पीड़ाएं होने वाली हैं यह तू जानता नहीं है और विचारता भी नहीं है ॥६॥ उपजाति विवेचन-किसी ने जरा सा अपमान किया कि उसे घोर दण्ड देना या जान से मार डालना, यह कितना खराब है । यदि
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy