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________________ धनममत्व १०३ धन को तीन कारणों से छोड़ना चाहिए (१) परभव में दुर्गति (२) इस भव में वर्तमान भय (३) धर्म विमुखता । अब प्रायः राजा नष्ट हो गए और गणतंत्र का शासन है। हम सब देख रहे हैं कि देखते ही देखते कितने कर (टेक्स) सरकार ने लगा दिए हैं। आयकर के अतिरिक्त मृत्युकर व धर्मादा कर भी लागू हो गया है एवं धर्मादे के खर्च भी सरकार की संरक्षिता में करने पड़ेंगे। ऐसी हालत में हे मनुष्यों! क्यों धन का संग्रह व आवश्यकता से अधिक उपार्जन कर भारी बनते हो ? सबसे बड़ी हानि जो धन से होती है वह यह है कि सदा सर्वदा इसकी धुन सवार रहने से धर्म कर्म भी याद नहीं पाते हैं । एक प्रकार का नशा छाया रहता है और विद्युत् यंत्र के समान आदमी सुबह से रात तक इसी को आराधना में लगा रहता है तब धर्म की याद आ ही नहीं सकती है और बिना धर्म के आत्मा की पहचान हो नहीं सकती है, एवं नरकादि का भय पैदा नहीं हो सकता अतः आत्मा उत्तरोत्तर भारी बनता जाता है व नर्क की तरफ बढ़ता जाता है। परिणामतः जो धन सूख के लिए कमाया था वह दु:ख का कारण बन गया। सात क्षेत्रों में धन लगाने का उपदेश क्षेत्रेषु नो वपसि यत्सदपि स्वमेतद्यातासि तत्परभवे किमिदं गृहीत्वा । तस्यार्जनादिजनिताघचयाजितात्ते, भावी कथं नरकदुःखभराच्च मोक्षः ॥ ७ ॥ अर्थ तेरे पास धन होते हुए भी यदि तू (सात) क्षेत्र
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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