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________________ ६५ तू ने तो उसी हेतु को मानकर ही वर्णन किया है कि जो ऊपर की भावना से लक्ष्मी प्राप्त कर रहा है या सुख प्राप्ति के लिए लक्ष्मी का संग्रह कर रहा है वह कर्मादानी, प्रारंभ समारंभ युक्त होने से तुझे संसार समुद्र में डुबाने वाली एवं भवों में भ्रमण कराने वाली है अतः इसकी ममता छोड़ दे । धनममत्व मम्मण सेठ की तरह से धन पर ममता रखने से मनुष्य को जीवन भर कष्ट होता है एवं वह धन स्वयं के भी उपयोग में नहीं आता है । वह सेठ तेल और चंवले का भोजन करता था, जंगल में गोबर बीनता था। एक बार चौमासे की घोर अंधेरी मध्य रात्री में वह नदी में से लकड़ी खींच रहा था, श्रेणिक राजा की राणी ने बिजली चमकने से उसे देखकर राजा से उसका दुःख दूर करने को कहा । प्रातः राजा ने उसे इच्छित वस्तु मांगने को कहा तो मम्मण ने कहा कि मुझे एक बैल चाहिए जैसा कि मेरे घर पर है । राजा की गऊशाला के बैल उसने पसंद नहीं किए, अतः विवश होकर राजा अपने पुत्र अभयकुमार के साथ सेठ के घर पर गया । जब वे उसके विशाल भवन में एक के बाद दूसरे कमरे में प्रवेश करते हुए कितने ही कमरों के पश्चात एक सुन्दर खंड में पहुंचे तो राजा की आंखें चौंधिया गईं वह क्या देखता है कि एक स्वर्ण निर्मित बैल रत्नों से जड़ा हुवा तैयार है जिसके सामने देखा भी नहीं जा सकता है । अत्यंत अमूल्य देदीप्यमान रत्नों की प्रभा उसमें से निकल रही थी जो सूर्यकांति के सदृश थी । एक बैल तो पूरा था ही दूसरा भी सोने का बना हुवा था लेकिन
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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