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________________ पुत्रममत्व गृहस्थाश्रम में संतान तो प्रायः होती ही है उसे घर से निकालने या छोड़ देने का तात्पर्य नहीं है। तात्पर्य तो यह है कि जो जीव हमारे यहां संतान रूप से आया है उसे हम उत्तम शिक्षा देवें जिससे वह अपना व्यवहार चलाता हुवा भी धर्म की तरफ रुचि वाला होकर आत्म कल्याण को साधे व उत्तरोत्तर मोक्ष की तरफ बढ़े। कितने ही लोग संतान के बिना बेचैन रहकर उसकी प्राप्ति के लिए अनेक उपाय करते हैं। देवी देवताओं की उपासना करते हैं, मंत्र, जंत्र, तावीज आदि कराकर ठगों के चंगुल में भी फंसते हैं। कई लोग एक स्त्री होते हुए भी संतान के लिए फिर विवाह कर जीवन को क्लेशमय बनाते हैं फिर उससे भी संतान नहीं होती है तो दो शोकों के बीच शोकसागर में गोते खाते हैं। वे दोनों स्त्रियां राक्षसियों की तरह से उसका कलेजा खाती रहती हैं। अतः संतान पर मोह रखकर अपना जीवन निष्फल करने की अपेक्षा संसार का स्वरूप समझकर अपना कर्तव्य करते हुए उन्हें बाधक के बजाय साधक बनाना चाहिए तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है और हमारे यहां जन्मी हुई संतान प्राते भव में पुण्यानुबंधी पुण्य के द्वारा उत्तरोत्तर मोक्षसाधक बनकर स्वयं का कल्याण करने वाली हो। अतः संतान पर से ममत्व दूर करना चाहिए और आत्म शांति में लगा रहना चाहिए। इति अपत्य ममत्वमोचनाधिकारः
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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