SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-कल्पद्रुम तेरा घर श्मशानवत बन जाता है। इस प्रकार से संतान, सुख के बजाय दुखकर अधिक होती है एवं आत्मशांति को नष्ट करती रहती है। यदि लक्ष्मी देवी रुष्ट हो और दरिद्र नारायण की कृपा हो तथा घर में संतान पर संतान होती जाती हो और उनमें भी कन्याएं ज्यादा हों तब तो पूछना ही क्या ? सुख स्वप्नवत हो जाता है। __ आक्षेप द्वारा पुत्रममत्व के त्याम का उपदेश कुक्षौ युवत्याः कृमयो विचित्रा, अप्यस्रशुक्रप्रभवा भवन्ति । न तेषु तस्या न हि तत्पतेश्च, रागस्ततोऽयं किमपत्यकेषु ॥३॥ अर्थ रज और वीर्य के संयोग से स्त्री की योनि में विचित्र कीड़े उत्पन्न होते हैं परन्तु उन कीड़ों पर उस स्त्री को या उसके पति को राग नहीं होता है तो फिर पुत्र पुत्री रूप कोड़ों पर राग क्यों होता है ? ॥ ३॥ उपजाति विवेचन स्त्री की योनि में अनेक कीड़े उत्पन्न होते हैं, द्वेन्द्रिय के अतिरिक्त समुच्छिम मनुष्य तक वहां होते हैं, यह धर्मशास्त्रों व कामशास्त्रों में प्रसिद्ध है, तो फिर स्थान, समय और संयोगों की एकता होते हुए भी उन कीड़ों पर राग न होकर केवल संतान पर ही राग क्यों होता है ? ग्रंथकार ने संतान पर से ममत्व बुद्धि को दूर करने के लिए मार्मिक शब्दों में उच्चभाव का प्रदर्शन किया है जो कि कटु होते हुए भी हितकर है।
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy