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________________ सहित इसको लिखा है। अत्यन्त महत्व के विषयों को तो कहीं कहीं पर शब्दशः अनुवाद करके लिख दिया है । पूज्य पाठको ! यह जो कुछ आप श्री के करकमलों में उपस्थित है वह आपके ही एक धर्मबंधु द्वारा अर्पण है। मुझ में कुछ भी शक्ति नहीं है । यह सब मेरे परमोपकारी पंजाब केसरी, विद्याप्रेमी स्व० प्रा० श्री विजयवल्लभसूरिजी की कृपा का परिणाम है जिनके द्वारा स्थापित श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला पंजाब का मैं तथा मेरे भाई श्री दोपचंदजी हुकमचंदजी व धर्मचंदजी स्नातक हैं। ऐसे उच्चकोटि के अध्यात्म संबंधी ग्रन्थ के साथ मेरा नाम लगाते हुए मुझे लज्जा प्रतीत होरही है । कहां तो प्रखर विद्वान् कालिसरस्वती विरुदधारक श्री मुनिसुन्दर सूरीश्वरजी महाराज तथा श्री मोतीचन्द भाई और कहां अल्प बुद्धि में । वे सूर्य-चन्द्र हैं, मैं उनके समक्ष छोटा दीपक भी नहीं हूँ। परंतु इस ग्रन्थ के रचयिता ने संतकरं स्तवन की रचना जिस पुण्य पवित्र भूमि में की थी वही भूमि देलवाड़ा मेवाड़ मेरी भी जन्मदातृ है अतः स्वाभाविक ही इस ग्रन्थ के प्रति मेरा आकर्षण है और मैं गन्थकर्ता का दो तरह से ऋणी हूँ। ___ ग्रंथ का विवेचन करते हुए मुझे कहीं-कहीं पर कटु शब्दों का प्रयोग भी करना पड़ा है और विशेषकर यति शिक्षा के अध्ययन में तो इसकी अधिकता है । यह अध्ययन वास्तव में बहुत ही महत्व का है और इस पर कुछ लिखना श्रावक के लिए अनाधिकार चेष्टा है । ग्रन्थकार ने श्लोकों द्वारा जो उपदेश दिया है
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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