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________________ समता ७३ उसका संबंध क्यों है ? मेरे और इसके गुणों में अंतर क्या है ? कहां तक वह मेरे साथ रहेगी ? इस पद्धति से विचारने से आत्मजागृति प्राप्त होगी और आत्मनिरीक्षण करने में रुचि उत्पन्न होगी। इस ग्रंथ के १६ अध्यायों में प्रथम स्थान समता को देने का कारण यही है कि यह समस्त गुणों का बीज है जिसका फल मोक्ष है । कल्पवृक्ष (अध्यात्म-कल्पद्रुम) का बीज समता को सिद्ध करने के लिए अनेक तरह से ग्रंथकार ने प्रयत्न किया है अतः इस आत्मा के लिए प्रथम कर्त्तव्य अपने आप में इस बीज का प्रारोपण करना है। जो मनुष्य अपना हित चाहता हुवा भी दूसरों का कल्याण करना चाहता हो वह इस धरातल पर (समता के धरातल पर) अपने आप को लाने का प्रयत्न करे, बिना समता के कुछ भी साध्य नहीं है अतः समता पर बार बार लिखा है। हे कल्याणमयी आत्मा ! अपने स्वरूप को पहचान, यदि तू चाहता है कि असतो मां सद् गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतंगमय अर्थात् मेरी आत्मा में रहा हुवा असत् सत् हो जाय (बुराई अच्छाई हो जाय ), प्रात्मा में रहा हुवा अंधकार ज्योतिर्मय हो जाय एवं मृत्यु अमृत्यु बन जाय अर्थात मैं अमर बन जाऊँ, तो समता रस का पान कर । सब ही प्राणी समता की आराधना करें, यही भावना है । सुज्ञ महानुभाव ! इस अध्याय को व दूसरे सभी अध्यायों को शांति से पढ़कर मनन करें, ऐसी प्रार्थना है। इति सविवेचनः समतानामः प्रथमोधिकारः
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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