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________________ ७० अध्यात्म-कल्पद्रुम से छुड़ा न सके, अंत में त्यागी महापुरुष महावीर हो उन्हें सत्पथ दर्शक व दुःखों के त्राता, जन्म मरण के भयों से मुक्त कराने वाले मिले। इसके संबंध में अनाथी मुनि, अषाढ़भूति, नंदिषेण, आर्द्रक कुमार आदि के चरित्र पढ़ने योग्य हैं । ____ आप देखते हैं कि जग में कोई किसी का सच्चा रक्षक नहीं है अतः हम अपने संबंधियों के ममत्व से दूर होकर अपना उद्धार आप करें। उद्धरेत् प्रात्मनात्मानम् । यदि आपके मकान में आग लग गई हो, रात का समय हो, अग्नि आपके व आपके अबोध पुत्र के समीप पहुंच गई हो, रास्ता भी जल रहा हो, दूसरे सब परिवार के लोग (अशक्त माता पिता स्त्री आदि) भी चीत्कार कर रहे हों उस वक्त कहिए आप अकेले भागेंगे या दूसरों की फिक्र करेंगे ? जरूर ही अपना बचाव पहले होता है । उसी प्रकार से इस संसार की अग्नि से अपना बचाव पहले कीजिए। शोक को त्याग कर अशोक-अमरनिरंजन निराकार स्वरूप को प्राप्त कीजिए। . उपसंहार-राग द्वेष का त्याग सचेतनाः पुद्गलपिंडजीवा, अर्थाः परे चाणुमया द्वयेपि । दधत्यनंतान् परिणामभावांस्तत्तेषु कस्त्वर्हति रागरोषौ ॥३४।। अर्थ—पुद्गल पिंड (के आश्रित) जीव सचेतन हैं, परमाणुमय धनादि अचेतन हैं। ये दोनों अनंत पर्याय भावों को (बदलने के स्वभाव को) पाते रहते हैं अतः उन पर राग द्वेष करने में कौन योग्य है ? ॥ ३४ ॥ उपजाति
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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