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________________ ६४ अध्यात्म-कल्पद्रुम देना पड़ेगा अतः इनका ममत्व छोड़कर मौत को सिर पर जान कर इनके वश में से निकलने का प्रयत्न कर । विषय पर मोह-- उसका स्वरूप, समता का उपदेश नो धनैः परिजनैः स्वजनैर्वा, देवतैः परिचितैरपि मंत्रः । रक्ष्यतेऽत्र खलु कोऽपि कृतांतान्नो विभावयसि मूढ किमेवम् ||२६|| तैर्भवेऽपि यदहो सुखमिच्छंस्तस्य साधनतया प्रतिभातैः । मुह्यसि प्रतिकलं विषयेषु, प्रीतिमेषि न तु साम्यसतत्त्वे ||३०|| अर्थ-धन, नौकर, कुटुम्बी, देवता परिचित मंत्र, इनमें से कोई भी तेरी मृत्यु से रक्षा नहीं कर सकता है यह निश्चित ही है । हे मूर्ख तू यह विचार क्यों नहीं करता है । सुख प्राप्ति के साधन स्वरूप दिखते हुए इन सबके द्वारा सुख चाहता हुवा हे भाई! तू प्रतिक्षण विषयों में प्रमत्त हो रहा है परन्तु समता स्वरूप वास्तविक रहस्य से प्रीति नहीं कर रहा है ।। २६-३०।। स्वागतावृत्त विवेचन-धन देकर जगत के रिश्वतखोर व शक्तिशाली हाकिमों को प्रसन्न किया जा सकता है, और दण्ड से छूटा जा सकता है । शारीरिक व मानसिक कुछ व्याधियों या चिंताओं को नौकर व कुटुम्बी कुछ समय के लिए दूर कर सकते हैं, सर्प आदि को मंत्र से वश में किया जा सकता है परन्तु ये सब तरकीबें यमराज के सामने नहीं चल सकती हैं । इनमें से कोई भी हमें मृत्यु से नहीं बचा सकता है । बादशाहों का बादशाह सिकन्दर जब सबसे बड़े बादशाह यमराज के दरबार में जाने लगता है उस वक्त वह क्या कहता है :
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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