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________________ ह ज्ञान, मनन व तप की आवश्यकता है । यह ग्रंथ मोक्ष का सोपान है । आयु तो पूरी होगी ही चाहे अच्छी करणी करते हुए बिताओ चाहे पाप करणी करते हुए परन्तु फल दोनों का अलग अलग होगा, अतः विवेक द्वारा सोचकर मोक्ष की तरफ बढ़ते हुए प्रायु को बताना चाहिए । इस अमूल्य ग्रंथ के पढ़ने का उपदेश मुझे श्री मंगल विजय जी महाराज सा० ( नीति सूरीश्वरजी के प्रशिष्य ) ने दिया था जिनका मैं ऋणी हूँ । इस अपूर्व ग्रन्थ को रचना परम अध्यात्मयोगी, अनेक ग्रन्थों के रचयिता, तथा 'संतिकरं स्तवन' के कर्ता श्री मुनिसुन्दर सूरिजी ने प्रायः वि० सं० १४७५ से १५०० के बीच में की थी। श्री धनविजयगणिजी ने इस पर एक लिखी थी जिसे बहुत वर्ष व्यतीत होगए। वर्तमान में इस पर विस्तृत विवेचन स्वनाम धन्य, साक्षर, अध्यात्म चिंतक स्व० श्री मोतीचन्द भाई गिरधरलाल कापड़िया ने गुजराती भाषा में किया और श्री जैन धर्म प्रसारक सभा भावनगर ने वि० सं० १९६५ में इसका प्रकाशन किया । यह विवेचन ग्रन्थ बहुत ही विस्तृत है। इसमें प्रत्येक विषय का प्रतिपादन बहुत गहराई से किया गया है। इसे पढ़ते-पढ़ते मुझे प्रांतरिक प्रेरणा हुई कि क्यों न मैं भी हिंदी भाषा में इसका स्वतन्त्र विवेचन करूँ जो अधिक विस्तृत न होकर सरल हो और हिन्दी पाठकों के उपयोगी हो । फलतः वि० सं० २०१३ विजयादशमी के मंगल प्रभात में मैंने इसका प्रारंभ किया और वि० सं० २०१४ माघ शक्ला १० के शुभ दिन में इतिश्री किया । पश्चात् इसको
SR No.022235
Book TitleAdhyatma Kalpdrumabhidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatahchand Mahatma
PublisherFatahchand Shreelalji Mahatma
Publication Year1958
Total Pages494
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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