SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + सिद्धान्तसार.. (५५) सूत्र पन्नवणा पद १७ मे. वली एक जीवने एक नवमां अशंख्याती वेला सम्यक्त श्रावे अने जाय, एम कडं बे. वली समकितिनी जघन्य स्थिति अंतर मुहूर्तनी कही बे. ते अंतर मुहूर्तना अशंख्याता नेद . जघन्य बे समयने अंतर मुहर्त कहीये; केमके वेदनी कर्मनी जघन्य स्थिति अंतर मुहर्तनी कही . शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन ३३ में तथा जगवतीजीमां तथा पन्नवणा पद २३ में वेदनी कर्मना बे नेदःशाता अने अशाता. शाता वेदनीना बे नेदः-संप्राय अने रियावही. रियावहीनी स्थिति बे समयनी कही जे. शाख सूत्र पन्नवणा पद २३ में तथा जगवतीजीमां. ए न्याये जघन्य बे समयने अंतर मुहूर्त कहीये, श्रने नत्कृष्टा बे समयथी मामीने एक अंतर मुहूर्तमां एक समय नको होय तेने अंतरमुहूर्त कहीये. एम असंख्याता नेद . - ए न्याये श्रानखाना बंध समये सम्यक्त गयु दीसे जे. जेम मेघकुमारने हाथीना नवमां, तथा सुमुख तथा विज्य-गाथापतीने सम्यक्त फर्शवाथी संसार परित थयो , तथा सम्यक्तथी सनमुख थया डे, अने मनुष्यनुं श्रान बांध्युं तेवेला सम्यक्त गयुं दीसे . पी तो श्री केवलीमाहाराज स्वीकारे ते सत्य जे. वली ज्यारे भेषकुमार संजमथी मगीने प्रनुपासे श्राव्या, त्यारे श्री वीरप्रजुए कह्यं के, "हे मेघ! तें हाथीना नवमां दया पाली, तेथी तिर्यंचना नवमां सम्यक्त लाध्यु." एम कडं. ते श्री ज्ञाताजीना अध्ययन पेहेलानो पाठ लखोए बीए:तंजश्त्ताव तुमे मेदा तिरिक-जोणिय नवमुवागएणं अप्पमिल६ सम्मतरयण खनेणं सेमाए पाणाणुकंपयाए जाव अंतराचेव संधारिए णो चेवणं णिकित्ते किमंगपुण तुमे मेहा श्याणि विनल कुल समुन्नवेणं ॥ अर्थः-पुर्ववत्- जुर्व प्रश्न पहेलो. पालपाने ४ए में. जावार्थः-अहीया कडं डे के, कोइ दोवस नहो मलेवू एवँ
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy