SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ +सिद्धान्तसार.. - - णोरोइए. इदाणिनंते एतेसिं पयाणं जाणयाय सवणयाए बोदियाए अनिगमेणं दिहाणं सुयाणं मूयाणं विणयाणं वोगडाणं वोबिणाणं णिज्जुढाणं उवधारियाणं. एयं महें सद्ददामि पत्तियामि रोएमि. एवमेयं सेजदेयं तुब्नेवयह॥ अर्थः-ते ते कालने विषे ते समयने विषे पा श्री पार्श्वनाथजीना (अपत्य) शिष्य का कालासवेसितपुत्र नामे श्र अणगार साधु जे ज्यां थे श्री माहावीरनगवंतना शिष्य श्रूतवृज (घणा विधान स्थि. वर) जगवंत ले ते त्यां उ० आवे, आवीने थे० स्थिवरलगवंत प्रत्ये ए० एम.व कहे. थे हे स्थिवर ! तमे सा० समता नावरुप सामायक नए न जाणो, तथा तेनो अर्थ प्रयोजन कर्म अनुपादानरुप ते पण न जाणो, थे स्थिवर ! प० पोरसि आदि नियम तमे न जाणो, थेग स्थिवर ! पण पचखाणनो अर्थ ( आश्रयद्वार निरोध) न जाणो, थे० स्थिवर ! संग पृथ्वि आदि रहा लक्षणरुप संजम ते न जाणो, थेग स्थिवर ! सं० संजमनो अर्थ (अनाश्रवपणुं ते) न जाणो, थेग स्थिवर ! सं० सर्व इंडि अने नोइंजिनो निग्रहरूप संवर ते न जाणो, थे स्थिवर ! सं० संवरनो अर्थ (अनाश्रवपणुं ते ) न जाणो, थेग स्थिवर ! वि० विवेक (विशिष्ट बोध ते) न जाणो, थेग स्थिवर ! वि० विवेकनो अर्थ (त्याग अत्यागादि ते) न जाणो, थे० स्थिवर! वि० कानसग्ग (कायाना त्यागरुप ते) न जाणो, तेमज थेग हे स्थिवर ! वि० काउसग्गनो अर्थ वान्डा रहित ते पण तमे न जाणो. त तेवारे थे स्थिवरनगवंत, का ते कालासवे. सितपुत्र-श्रणगार प्रत्ये ए० एम कहेता हवा. जाण जाणीये बोए हे आर्य! सा० समता प्रणामरुप सामायक, हे आर्य ! सा० सामायकनो अर्थ (कर्म अनुपादान निर्जरारुप), जाण यावत् जाम् जाणीए बीए हे आर्य! वि० कानसग्गनो (काया त्यागरुप तेनो) अर्थ कर्म निर्जरारुप, इत्यर्थः त तेवारे का कालाशवेशितपुत्र नामे श्रण साधु ते ते थे० स्थिवरजगवंत प्रत्ये ए एम केहेता हवा. जण जो अपहे आयो ! तु० तमे
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy