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________________ सिद्धान्तसार. + (३७) म जो दानादिकमां पाप कदेशो तो, तथा खोटा अर्थ करशो तो उलटी गळामां परुशे. वळी सुयगमांगजीना प्रथम भूतष्कंधना बीजाअध्ययननी गाथा नवमीमां कयुं बे के, मिथ्यात्वी मास मास खमणे प्रारणां करे, तोपण अनंतानु बंधी माया बुटी नथी, तेथी अनंता जन्म मरण वधारे. ते गाथा नवमी: जय वियाग किसेचरे, जयविय चुंजिये मास मंतसो; जेइह मायाइ तिमिद्य, आगंता गब्जायणं तसो ॥ ॥ अर्थः- जे० जो घणी क्रिया करे, ए० नग्न थने रहे, दुर्बळ शरीरी ने विचरे, जप तप घणो करे, आहार निरस करे, अने माल मास खमण करीने पारएं करे, एवी रीते जीवे त्यां सुधी करे, तोपण जे जे क्रोइ माया सहित बीजाने ठगवारुप योगेकरी बगध्यानी इ वर्ते, (ते मायानां फळ कड़े बे.) आण ते आग मिये (नविष्य) काळे ० गर्जने विषे जन्म मरणनां अनंतां दुःख पामे. जावार्थ:- दवे जुड़े ! मिथ्यात्वीनी करणी आज्ञा मांहलो धर्म होय तो, मंता जन्म मरण वधे, एम केम कल्युं ? माया हो ते विचारी जोजो. त्यारे तेरापंथी कहेबे के, एतो माया कपटाइनां फळ कह्यांडे. तेनो उतारे जाइयो ! मायाकपटाइनां फळ तो खोटां बेज, तेमां शुं देवु. समकिति साधु श्रावकपण कपटाइ करेतो तेनां तो फळ खोटांअ लागशे, पण अहियां तो मायाकपटाइ ए मिथ्यात्वनुं नाम डे, अने मिथ्यात्वीने मायाकपटाइ बुटी नथी, तेथी मासमासखमण तप करे, तो अनंता जन्म मरण वधे, एम कयुंडे. जो एकली कपटाइनांअ फळ कांबे, एम कदेशो तो तपस्यानो अधिकार या गाथामां कद्देवानो शुं प्रयोजन ? छाने तपस्यानां फळ केम न कह्यां ? अने ते क्योंगयां जे हो ? अरे जाइयो ! मिथ्यात्वीनी तपश्याथी पुन्य प्रकृति बंधाय देवतामां जायाने त्यां सुख जोगवे; पण तेनी समी सर्वया किना
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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