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________________ (४७) - सिद्धान्तसार.. पहोंच्या थका (सिदावसे) पस्ताशे. इहां पण पुण्यने सरणांगत (करवा योग्य) वखाएयु. वलो पुण्यने धर्मनुं कारण कयुं. शाख सूत्र उत्तराध्ययन अध्ययन १७ मानी गाथा ३४ मी: एयपुन्नपयं सोचा अन धम्मोव सोदियं; जरदोवि नारदंवासं चिच्चाकामाइं पवश्ए ॥ १७ ॥ अर्थः-ए० ए ज्ञान सहित श्राशीष . ए चारीत्र धर्म ते केवो बे, के कायरने आचरतां दोहीलो अने तम सरखा शूराने सोहीलो. ए ज्ञान सहित क्रिया धारीने जरतादिके संसार मुक्यो. पु० पुन्य पवित्र पदने एटले शुद्ध जिनमतने सो सांजलीने अवधारीने संसार मुक्यो. अण् अर्थ ते मुक्तिरुप फल ध धर्म ते जिनशासनरुप ज्ञानदर्शन सहित चारीत्र धर्म, ए बंने करी ना नरत चक्रवर्ती ना नरत देत्रने विषे चि बांझीने, वली का काम जोग बांमीने प० संजमवंत थया. ॥३०॥ नावार्थः-हवे जुर्म ! था उपरनी गाथामां पण चारीत्रने पुन्य पद कही बोलाव्यु. वली अंतगममां श्री कृष्णे कयुं के, “धन्य, पुन्य, कृतार्थ जालीकुमार प्रमुखने, के जेणे चारीत्र लोधुं. हुं अधन्य, श्रपुन्य, के चारीत्र मुजने न श्रावे.” हवे जुन ! देवानुप्रीय ! चारित्र पण पुण्यवंत जीवनेज आवतुं कर्तुं . वली प्रश्न व्याकरणमा प्रथम संवरहारे “ चनगयं पखंदे काहिति अणंत्ते शकय पुनेजे नसुणंति धम्मसो उणजे पमायंति" कयु के, चारगतिमां कोण फरे? अकृत्य पुन्या, पुन्य रहित, अनागिया अने पापीया जीव होय ते (रुले)नमे अने सजागीया, नाग्यवंत अने पुन्यवंत जीव चार गतिमां न नमे. वली सू. यगमांग सूत्रना बीजा श्रुतष्कंधना बीजा अध्ययनमां का के, हिंसामां धर्म कहे ते श्रमण-माहण चार गतिमां “कलकली नागीणा जविस अजागीया थाशे एम कडं; अने जे श्रमण-माहण शुद्ध धर्म कहे ते चार गतीमां " कलकली नागीणो न विस” अन्नाीया नही थाय एम कर्य. वली उचराध्ययनना ३६ मा अध्ययनमा कडूं के “ता
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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