SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२ ) 4 सिद्धान्तसार. अकार्य करी शकती नथी, प० जेणे हाथपगना नख, दाढीना रोमराय (स्त्रीने न होय पण कोइ स्त्रीने अल्प होय ते माटे) माथाना केश तथा बांझनी सेमराय मोटां वधार्यांबे ( समरावती नथी ), व जेणे बोड्यांबे पु० सेवंत्री जाइ जुइ मोगरादिक फुल गंध श्रामान्य अने म० फुलनी माळा अलंकार श्राजर्यादि, तेमज ० जेणे स्नान पण बोम्युं बे तथा ० परसेवो ज० रजमात्र म० काठो मेल पं० ढीलो मेल परसेवाथी नीजाय एवी रीते प० परितापथी जेथे शरीरने क्लेश पमाख्यो बे, तथा व जेणे ढांड्यां बे खि० खीर दुध द० दही ए० माखण स० घृत, तेल, गोळ, खांग, साकरादिक लुंए मण्मध म० चंद्रहास्यादिक मद्य, तथा मं० जलचर थलचर ने खेचर संबंधीना मांसनो जेणे पर परिहार कर्यो बे, प्रजेने थोमी इच्छा के अ० कर्शणादिकनो थोको प्रारंभ बे ० धनादिकनो थोको परिग्रह के श्र० जोव घात्यादिकनो थोको था. रंबे जीवने परिताप उपजाववारुप थोको समारंभ बे तेवा ० थोमा आरंभ समारंने करी वि० वृत्त । श्राजीविका करतीथकी छा० विनामन ब्रह्मचर्य विषे वसतीयकी ते जे पतिनी पोढवानी सिज्या बेगमा अतिक्रमतो ( नलंघती ) नयी ता० एवी स्त्री जात ए० एवा प्रकारना वि विहारे कर रो वि० विचरतीय की ब० घणा वा वर्ष सुधी, शेष बोल पूर्वनी पेरे जाएावा; जा० यावत् चण् चोसठ हजार वर्ष संवत्सरनी उखानी स्थिति पर श्री तीर्थंकरदेवे कही ॥ ८ ॥ वळी अन्यमति, तापस, ग्रहस्थी, विनयवादी क्रियावादी श्री वीतरागदेवनी श्राज्ञाबाहार चाले बे, तोपण ते देवतापणे नृपजे ते पाठ लखीए बीएः सेजेइमे गामागर गर जाव सणिवेसेसु मणुआ जवंति तंजदा:- दगबत्तिया दगतश्या दगसत्तमा दुग एक्कारसगा गोयमा गोवइया गिदिन्धमा धम्म-चिंतका विरुद्ध वि रुद्ध बुढ सावगप्पतियो तेसिं मणुयाणं णो कप्प्रति
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy