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________________ + सिदान्तसार.. ( ३५७ ) पचखाण२. सर्व मूलगुण-पचखाण तो पांच श्रावना सर्व त्याग करे तेने कहीए, ते तो साधुजीनेज होय. वली वर्णनागनतुवे अने अंबमजीना शिष्य प्रमुख अनेक श्रावकोए संथारा कर्या तेमने तथा पमिमाधारी प्रमुख श्रावकने पण त्याग थया; अने हिंसादिक पांच आश्रवना देश थकी त्याग करे ते श्रावकने देश-मूलगुण-पचखाण थाय; श्रने सर्व उत्तरगुण-पचखाण नवकारसी, पोरसी, पुरिमढ, एकासगुं, एकलगj, नीवी, श्रायंबील, उपवास, बेला,तेला, जावत् संथारो, ए साधु श्रावक सर्वथा थाहारादिकना त्याग करे तेनेज निपजे; अने श्रावकनां नपलां सात व्रत (गथी लश्ने बारमा सुधी) ए देश उत्तरगुण-पचखाण श्रा. वकने तो बेज; अने साधुने केटलाक तो पचखाण पांच श्राश्रवना सर्वथा त्याग ले तेमां श्रावी गया अने केटलाक साधुना वेशना व्यवहारनी साथे श्रावी गया. बाकी अव्यादिक श्रहार, उपगर्ण, वस्त्र अने पात्रादिकना देशथकी त्याग करे त्यारे साधुजीने देशथकी उत्तरगुण-पच. खाण निपजे. वली हिंसादिक पांच आश्रवना सर्वथकी त्याग अथवा देशथकी त्याग न होय तेने मूल-गुणना अपचखाणी कहीए; अने आहार वस्त्रादिकनो सर्वथकी अथवा देसथकी त्याग न होय तेने उत्तरगुणना अपचखाणी कहीए. ए लेखे श्रावक सुपात्रमा डे अने तेना दानमां प्रणामानुसारे दातारने फलनी प्राप्ती थाय . तमे श्रावकने कुपात्र कहीने श्रावकनी अशातना-रुप अबोध पाप केम नपार्जन करो हो ? ॥ प्रश्न त्रीजो संपूण.
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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