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________________ + सिद्धान्तसार रिया कचंति. मिन्बादीहीणं पंच.सम्मामिबादीहीणं पंच. अर्थः-पुर्ववत्. जुर्ग प्रश्न बीजो पाने १५३ में. नावार्थ:-हवे जु! श्रा पाठमां चोवीस दमकना मिथ्यात्वी जीवने तो आरंजनी, परिग्रहनी, मायाप्रत्ययनी, अपचखाणनी भने मिथ्या-दर्शन प्रत्ययनी ५ ए पांच क्रिया कही; अने अवति समदृष्टि चोथे गुणगणे, तेने मिथ्यात्वनी वर्जीने चार क्रिया कही; श्रने पांचमे गुणगणे श्रावक, तेने अवतनी थने मिथ्यात्वनी वर्जिने त्रज क्रिया कही; अने प्रमादो साधु बठे गुणगणे, तेने आरंजनी अने मायावत्तियानी बे क्रिया कही; श्रने अप्रमादी साधु सातमे गुणगणेथा लश् दसमा गुणगणा सुधी, तेने एक मायावत्तिया-क्रिया कहो; अने वीतरागसंजमी अग्यारमा गुणगणाथी लश् तेरमा गुणगणा सुधी, तेने एक इरियावहि क्रियाज लागे . वास्ते ए पांच क्रिया श्राश्री थक्रिय कह्या. हवे जु ! था पाठमां तो नगवंते सर्व श्रावकने अवतनो क्रिया टालो कही . तमे मतने लीधे श्राशंदजो सरखा पमिमाधारी श्रावकनुं खावं पीवं श्रव्रतमां केम कहो गे अने देवावालाने अबत लागे केम कहो बो? तेवारे तेरापंथी कहे जे के, ए तो खंध श्राश्री टाली कही , पण देश आश्री तो लागे डे ते गण नथी. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय! साधुजीने आरंनिया अने मायावतिया क्रिया कही, ते खंध आश्री कही ने के देश श्राश्री कही ले ते कहो. तेवारे तेरापंथी कहे जे के, “साधुजीने तो विना नपयोगे अजाणपणे किंचित मात्र लागे ते आश्री कह। वे.” त्यारे जुन. ए किंचित मात्र लागे तेने पण गणी, त्यारे श्रावकने देशथकी अवतनी क्रिया होय तो केम न गरो ?; पण अव्रत तो माह कर्मनी बीजो चोकमीना अप्रत्याख्यानना उदयनावमां होय तेना जोगथी कम लागे तेने कहीये. ते अव्रत तो श्रावकने मुलथीज नथी, तेथी अवतनी क्रिया नगवंते टाली कही तमे मतने लीधे ए सूत्रनां वचन उत्थापीने श्राएंदजीभावक जेवाने अव्रत कहोने अनंत संसार केम वधारोबो? .
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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