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________________ ( २८८ ) * सिद्धान्तसार.. अपच्चरकाणा मिहादसण ? गो! आरंनिया किरिया.. कवश्परिग्गदियामायावत्तिया अपञ्चकाण किरियाकघश्ः मिन्बादंसए-किरिया सियकयक्ष सियनोकय. अहसे मे अनिसमन्नागए जवई तसे पहा सवान तान पयणुश्नवा - अर्थः-गाण गाथापतिने नं हे नगवान ! नं० क्रियाणा प्रत्ये वि० वेचताथकाने के० कोइएक जनंग प्रत्ये १० चोरे. त० तेने नं० हे नगवान ! नं क्रियाणा प्रत्ये श्र० गवेषणा करताने (जोताने ) किं० शुं? आ० श्रारंचनी कि क्रिया का लागे ? प० परिग्रहनी कि क्रिया को लागे ? माछमायाप्रत्ययनी क्रिया लागे ? अ० अपत्याख्याननी क्रिया लागे श्रने मिथ्या दंसण प्रत्ययनी क्रिया लागे ? गो हे गौतम ! ते नंग गवेषणहारने आ० आरंजनी क्रिया लागे, तेमज प परिग्रहनो मा० मायाप्रत्ययनी अने थ० अप्रत्याख्याननी क्रियातो लागेज; पण मि० मिथ्यादसणप्रत्ययन क्रिया सि कदाचित का जो ग्रहपति मिथ्याअष्टी होय तो लागे, ने सि कदाचित न लागे (सम्यक्झष्टि होय तो न लागे). हवे क्रिया विष विशेष कहे. श्रण अथ हवे जो ते नि कियाएं अनि गवेषणा करतां लाध्युं न होय त तेवार पड़ी (ते साध्या पळी) से ते ग्रहस्थने स० श्रारंजादि जे क्रियानो संचव डे ते सर्व प० पातली न थाय. क्रियाएं लाध्या पळो उध्यम थोमो ते माटे. नावार्थः-हवे जु! हां तो एम कडं के, गाथापतिनुं क्रियाए॒ (जंग परिग्रह) चोरादिक लइ जाय अने गाथापति गवेषणा (शोध) करे, तेवारे आकुलव्याकुल आर्तध्यान जोगादिकनो उद्यम घणो याय. तेथी श्रारंनिया, परिग्रहिया, मायावत्तिया अने अपचखाणीया, ए चार क्रिया तो घणी जबरी लागेज, श्रने पांचम मिथ्यात्वनो क्रिया समकिति होय तेने न लागे, अने मिथ्यात्वी होय तो जबरी लागे. वली जे परिगृहादिक चोर लश् गयो २ ते गवेषणा करतां पातु श्रावी जाय, तेथी शंतोषजाव थाय, आकुलव्याकुल थार्तध्यान मटी जाय, तेवारे वीबाग
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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