SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ indian + सिद्धान्तसार.. अर्थः-ए० ए नंण् हे नगवान ! जी जीवने मू० मूलगुण-पच. खाणीने ना उत्तरगुण-पचखाणीने अण् अपचखाणीने का कोण कोणथकी जा जावत वि० घणा थोमा तुला विशेषाधिक होय? इति प्रश्न. गोण्हे गौतम ! स० देशथकी तथा सर्वथकी जे मूलगुण-पचखाणवंत ने ते थोमा , कारण के देशथकी तथा सर्वथकी उत्तरगुण-पचखाणवंत अशंख्याता . इहां सर्ववृत्तिने विषे जे नुत्तरगुणवंत होय ते अवश्य मूलगुणवंत होय अने जे मूलगुणवंत होय ते उत्तरगुणवंत होय अथवा उत्तरगुणविना होय तेज हां मूलगुणवंत ग्रहवा. ते उत्तरगुणथी थो. माज होय, घणा साधुने दसविध पचखाणना युक्तपणाथी. ते पण मूल. गुणथी शंख्यातगुणाज होय, कारण के सर्व जति शंख्याताज . हवे देशवृत्तिने विषे मूलगुणवंतथी जिन्न पण उत्तरगुणवंत पामीए. ते मधु. मांसादि विचीत्र श्रनिगृहथी बहुत्तर (विशेष) होय. एम देशवृत्ति उत्तरगुणवंत अधिक होय तेथी उत्तरगुणवंतने मूलगुणवंतथी अशंख्यातपणुं कडं. मनुष्य अने पंचेन्धि-तिर्यंचनेज पचखाण होय, तेथी वनस्पतिना अनंतपणा माटे अपचखाणी अनंतगुणा कह्या बे. ॥१॥ ए० ए. हनी जंग हे नगवान !पं० पंचेंजिति तिर्यंच जो योनिकनी पु० पुजा. उतर गोण् हे गौतम ! सण सर्वथी थोण थोमा जी0 जीव पं० पंचेंजितिर्यंचयोनिक मूण्मूलगुण-पचखाणी, तेथो न नत्तरगुण-पचखाणी था अशंख्यातगुणा भने श्र० अपचखाणी अशंख्यातगुणा. ॥२॥ ए० ए जंग हे नगवान ! म मनुष्य मू० मूलगुणपचखाणी? इत्यादिक प्रश्न कीधा. उत्तर गो हे गौतम! सण सर्वथी थोमा मूळ मूलगुरापचखाणी तेथी ज० उत्तरगुण-पचखाणी सं० शंख्यातगुणा तेथी श्रण अपचखाणी श्रश्रशं. ख्यातगुणा; गर्नज मनुष्य शंख्याताज डे ते माटे संमूर्बिम मनुष्यने ग्रहणे करी जाणवा. ॥३॥ जी जीव नं० हे नगवान ! किं शुं ? स० सर्वमलगुण-पचखाणी ने ? दे देशमूलगुण-पचखाणी ? के अ० अप. चखाणी ? इति प्रश्न उत्तर गो हे गौतम ! जी0 जीव स सर्वमूल. गुण-पचखाणी पण डे वे देशमूलगुण-पचखाणी पण अने श्राप
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy