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________________ + सिदान्तसार रहे तो मासिक प्रायश्चित प्रावे कडं. वली श्राचारांगादिक अनेक सूत्रोमां गम गम अन्यतिर्थीना ला रहे तथा अलाप सलाप करवो वज्यों ने. हवे तमे तो पांच स्थावर शुक्ष्म बादर,त्रण विगजि, माखी महर, चीमी, कंवेमी (होलो), प्रमुख सर्व अन्यतिर्थी गणोडो, अने साध श्रावक टाली सर्व श्रन्यतिर्थीज बे, अने प्रजुए तो एकज रात अन्यतिर्थी नेला रहे तो चोमासो प्रायश्चित कझुं बे. हवे तमे सवाय जाव जीव सुधी जाणी जाणीने अन्यतिर्थी नेला रहोडो. पांच स्थावर शुक्ष्म बादर सर्व जीवने अन्यतिर्थी मानोबो. त्यारे तमारी श्रमाने लेखे तमारा साधुनमा साधपणुं बे के नही ते कहो. . तेवारे तेरापंधी कहे के “ ए तो ३६३ पार्षमी अन्यतिर्थी जे. तेनी संगत कीधे समकितमां शंका पमे, ने श्रलाप सलाप वधे ते आश्री कथु बे; पण सर्व जीव अन्यतिर्थी ले ते श्राश्रो नथी कह्यु. " त्यारे हे देवानुप्रीय! आणंद श्रावके पण ३६३ पाखंमी, अन्यतिर्थी, मिथ्यात्वना स्वामी, तेने वंदणा नमस्कार करवानो तथा आहारादिक देवानो थ. जिग्रह लीधो डे; पण मागता जीखारी आदि सर्व अन्यतिर्थी , तेने अनुकंपा थाणीने दान देवानो (नियम) अनिग्रह नथी लीधो. ए जंगवती सूत्रना त्रीजा पाउनो, बाईकुमारनो, नृगुना बेटानो अने प्रा. एणंद श्रावकनो, ए चारे आलावानो परमार्थ एकज . एतो सर्व अन्यतिर्थी, ब्राह्मणो, मिथ्यात्व मतना मालोक, ते श्राश्री बे; कारणके तेने श्रावक दान आपे तो मिथ्यात्व लागे, परपाखमोनो सांसतो परचो लागे अने प्रलाप सलाप वधे तेथी तेनो निषेध कर्यो; पण रांक, मागता जी. खारी अने पुर्बलने मरता देखीने अनुकंपा शुलजोग आणीने दान दे तेमां पाप कया सूत्रमा कह्यु डे ते बतावो. तेवारे तेरापंथी कहे के “ मागता नीखारी प्रमुखने अनुकंपा थाणीने नंदनमणीयारे दान दी, तेथी देमको थयो." एवां सादृश्य अनार्य वचन बोले . तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! ज्ञाता सूत्रमा नंदनमणीयारनो अधिकार बे, त्यां तो एवो पाठ के अर्थ नथी के, ते दान दीधाथी देमको थ्यो. तमे कया
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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