SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ +सिद्धान्तसार. ( २६९) नाम मिथ्यात्व अंधकारमा पमे. वली बाह्मणोने जमाड्यां नारकीमा जाय, एवं वीवादवचनमा पापने कहे तोपण ग्रहस्थy वचन प्रमाणमां नथी; अने सूत्रमा तो गणधरे बाप बेटानी कहेगीनी अपेक्षानां वचन गुंथ्यां . ते विवादवचन अने अपेक्षाय वचननो उत्तर. बाईकुमारनी चरचामा लख्या बे. ते रीते जाणवा. वली थार्यकुमारने तो ब्राह्मणोए तथा नृगुना बेटाने नृगु-प्रोहीते पहेलां जीन-धर्मथी दिहाथी प्रणाम उतारखा वास्ते (वेदनो मत) मिथ्यात्वपणुं स्थाप्यु , अने ब्राह्मणोनुं गुरुपणुं जणाव्युं . तथा ब्रह्मन्नोजनमां पुन्यनो खंध, मोक्षनो हेतु, जणावी जिनधर्म निषेध्यो ने. तेथी आकुमारे अने नृगुप्रोहितना बेटाए. ब्राह्मणोने जीनमतना वेषी जाणीने कत्यु के, तमे कहो बो तेम सहहीने ब्राह्मणोने जो जमाने तो तमतमा (मिथ्यात्व अंधकार) मां पहोंचे अने नारकीमा जाय; एवं विवादमां वचन कडं; पण ते ग्रहस्थy विवाद वचन प्रमाणमां नथी. केवली मुनीराजनुं उपदेशीक वचन नीस्पृहिपणानुं नथी. नीस्पृहिपणे उपदेश वचन तो नमिराज रुषीए उत्तराध्ययन सूत्रना नवमा अध्ययनमां कह्यां बे. इंजे ब्राह्मणर्नु रुप बनावीने नमिराजना समकितना पारखा निमित्ते प्रश्न पुरया. ते ब्राह्मणने जमाड्या विषेनो नमिराज रुषीप नत्तर दीधो. ते पाठः-- जश्त्ता विनले जन्ने, नोइत्ता समण मादणे; जुच्चाय जिहाय, त गसि खतिया॥३०॥ एय महं निसामित्ता, हे कारण चोइन ... त नमिराय रिसि, देविंदो इण मबवी ॥ ३९॥ - जोसहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवंदए; तरसावि संजमो सेन, अदितस्स वि किंचणं ॥४०॥ अर्थः-ज जो वि० घणा विस्तीर्ण ज० यज्ञ जो जमामीने सा शाक्यादिक श्रमण मा ब्राह्मशने द" (गायादिक सुवर्णादिक दान)
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy