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________________ + सिद्धान्तसार.. (२४१) देवानी प्राज्ञा दे, के नावे असंजति श्रवति अपचखाणी जाणीने वेशवें कारण कांइ नहि, एम जाणीने त्रोजा पाठमां तथारुप असंजति, प्रवति कह्या तेवो जाणीने केवलज्ञानी संनोग बाहार काढे ते कहो. वली पूर्वोक्त कथनने स्पष्ट करवा अर्थे चोनंगी कहीये डीए, के एक तो साधुनो वेश अने संजति-व्रतिपणाना गुण १, एक साधुनो वेश श्रने असंजति अवति अपचखाणीपणाना गुण निश्चमां, ए अनवि साधु २, एक अन्यादिंगीनो वेश अने संजति जति पचखाणीपणाना गुण अन्यलिंगीमा नावे साधपणुं ते आश्री ३, अने एक अन्यमतिनो वेश अने असंजति अवति अपचखाणीपणाना गुण ते त्रणसो त्रेसठ पाखंमी ४, ए चार नांगामां पेहेला पाठमां कया नांगा अने त्रीजा पाठमां कया नांगा ते कहो. - तेवारे तेरापंथी कहे के “ पेहेलो श्रने बीजो जांगो तो पेहेला पाठमां , तेने दीधांतो एकान्त निर्जरा थाय, पाप नथी; अने त्रोजो ने चोथो नांगो त्रीजा पाठमां , तेने दीधां एकान्त पाप थाय." तेनो उत्तर. हे देवानुप्रीय ! तथारुपमा तमे कहोठो के, वेषy कारण कांश नको, तो बीजा नांगामां अनवी साधुने नावे असंजति अति अपचखाणी केवली जाणे , तेने पेहेला पाठमां केम गणो? अने त्रीजा नांगामां अन्यलिंगीमां जावे साधुपणुं होय, तेने केवलज्ञानी गुण पाश्री जावे संजति वृत्ति पचखाणी जाणे , तेने त्रीजा पाठमां केम गणो? वेशन कारणतो तमारे लेखे कांश नथी, गुण तो संजतिपणाना ले. पण हे देवानुप्रीय! तथारुप तो वेशथीज जाएयो जाय. तेथी त्रीजा पाठमां तथारुप असंजति कह्यो . ते असंजति पाषंमीनो वेश , मिथ्यात्व प्र. रुपे , अने मिथ्यात्वनो मालीक बे, तेनोज अधिकार ले. तेने पण दी. धानुं पाप नथी कयु. “पमिलानेमाणे किं कय” एवी पृडा बे.प्रतिलान नाम तो परम उत्कृष्ट लान मोदा निर्जरारुप लान जाणीने गुरुनी बुझे दे तेनेज कहीये; पण मांगता जीखारमुबलने अनुकंपा आणीने दान दे, तेने बत्रीस सूत्रमा को ठेकाणे पमिलानेमाणे नथी का
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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