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________________ ( २१९) 'सिद्धान्तसार.. ___जावार्थः-हवे जुर्छ ! ए सूत्र-पाठमां तो साधुना हरस (मसा) दे ते वैदने समचय क्रिया कही, अने साधुने निर्व्यापारपणाथी किया नो नाकारो कह्यो; अने जो साधु अनुमोदे तो तेने धर्मान्तराय लागे, (ध्याननी अंतराय पमे).वली ए पानी टीकामां कडं के, वैदने क्रियातो सागे, "ते करे इति क्रिया" पण वैद लोजनी बुद्धोए बेदे तो अशुनक्रिया ने अशुन्न फल लागे; अने धर्मनी बुझीए बेदे तोशुन फल क्रिया लागे. अनेशुन हवे जुर्ज! पा सूत्रने न्याये साधुने कोश्थनार्य फांसी दइ जाय, ते को उत्तम दयावंत प्राण। धर्मनी बुझे खोले, तथा कुतरो करमतां धर्मनी बुझे हाकोटे, तथा एवा अनेक प्रकारना साधुना उपसर्ग धर्मनी बुछिए टाले, तेने एकान्त शुन्न फल लागे. तमे “ साधुनी फांसी खोले तेने तथा साधुना अनेक प्रकारना नपसर्ग धर्मनी बुझेटाले तेने पाप लागे,". एवं कहीने ए सूत्रनां केवलीनां वचन मतना लोधे केम उथापोडो. ? तेवारे तेरापंथी कहे के, साधुनां कर्म तुटतां राखे तेने ध्यानादि. कनी धर्मनी अंतरायनो देणहार कहोये. तेनो उत्तर. हे देवानुप्रोय ! ए खेखे तो साधुने अहार देवावाला श्रावके पण तपस्यानो अंतराय दीधी, केमके नुखे मरतां कर्म कपातां ते राख्यां. जग्या देवावाले पण कर्म कपातां राख्यां. अनेक प्रकारनी शाता दीधी तेणे कर्म कपातां राख्यां. ए तमारे लेखेतो साधुजीने चौद प्रकार, दान पण देवू न जोश्ए, कारणके धर्मनी अंतराय लागे, अने कर्म कपातां रही जाय. ए तमारे लेखेतो साधुने फुःख दक्ष कर्म तोमावे तेने धर्म थाय. तेवारे तेरापंथी कहे के “श्राहारादिकतो साधु लेवो वान्ले डे, तेथी देवावालाने धर्म थाय; पण फांसी प्रमुख उपसर्ग ग्रहस्थीने टालवायूँ कहे नहि, तेथी पाप लागे." तेनो नत्तर. हे देवानुप्रीय ! सुखमी प्रमुख सरस अहार देखी. साधुए मनेकरीने पण वान्गवू नही, तेम तेने अर्थे ग्रहस्थीने घेर जावू पण नही, ए श्राचारांग तथा निषियमां का बे; पण दातार पोताना. जावधी प्रापे, तेने धर्म थाय के नही ते कहो. वली जबराश्थी साधुनो
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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