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________________ ( १७६) 4 सिद्धान्तसारः दे देवानुप्रीय! गौतमस्वामी श्राणंदजी श्रावकने घेर जाषामा क्या से समये तेमने चार ज्ञान, कषायकुशील नियंगे अने श्रागम व्यवहारीपणुं हतुं, एम कया सूत्रमां कयुं वे ते कहो. वली गौतमस्वामीनुं खने जगवंतनुं ज्ञान ने नियंतो सरखां नथी. अनंतगुण हानी वृद्धिपणुं वे जगवंतनो तो संजम नियंगे अपनवाइ बे. दिक्षा लीधी तेज वखते मनपर्यव - ज्ञान उपन्युं छाने पकायकुशील - नियंठो श्राव्यो. ते एक वार थावे अने ते पाठो जाय नहिं. वली कषायकुशील - नियंतानो संजम एक जीवने एक जवमां जघन्य एक वार श्रावे छाने स्कृष्टा नवसो वार जाय छाने नवसो वार पाठो श्रावे. वली कषायकुशील- नियं खानी ने मनपर्यवज्ञाननी स्थिति जघन्य एक समयनी कही. ते एक समय रहे ने बीजे समये वीलाइ जाय. कोइक जीवने वली पाठो एक समयथी तथा अंतरमुहूर्त तथा घणा कालथी पाटो धावे, अ कोइ जीवने ते जवमां पाढो श्रावेज नहिं, अने कोइ जीवने एक नवमां घणीवार जाय ने घणीवार यावे. तेनी उत्कृष्टी स्थिति देशेणी कोन पूर्वनी कही. ते एक वारज श्रावे पण पाठो आय नहिं . दोषनो अपमि - सेवीज रहे. वली चार ज्ञानवाला, कषायकुशील - नियंगवाला अने श्रागमव्यवहारना धणी कर्मने वशे ॠष्ट थइ जाय तो अर्धपुद्गल अनंतकाल संसारमां निगोदादिकमां जमे. शाख सूत्र जगवती शतक ५. में उद्देशे बठे, तथा पनवणामां ए सर्व अधिकार बे. ए कषायकुशील-नियंगे एक जवमां नवसोवार उत्कृष्टो यावे कयुं. तेनी स्थिति जघन्य एक समयनी कही, अने चष्ट थइ जाय तो उत्कृष्टो अर्थ पुद्गल रुके धुं; पण जगवंतने तो मनपर्यवज्ञान अने कषायकुशील मियंठो एकवार आव्या पढी पाठो जाय नहिं, एक समयनी स्थिति पण दोप नहिं छाने अर्धपुद्गल सुधी जमे पण नहिं. ते माटे सर्व कषायकुशी निगंगना धणीनो, गौतमस्वामीनो अने जगवंतनो बद्मस्थपणानो पक्ष संजम सरखो नथी. त्यारे हे देवानुप्रीय ! गौतम स्वामीनो धर्मे जगतनो कषायकुशील नियंतो सरखो केम? वखी गौतमस्वामी जापानी
SR No.022232
Book TitleSiddhant Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGambhirmal Hemraj Mehta
PublisherGambhirmal Hemraj Mehta
Publication Year1908
Total Pages534
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size16 MB
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