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________________ शतपदी भाषांतर. ( ७७ ) पण पीवाना अर्थे गोचरीथी अगाउ पाणी लाववानुं क्यां कयुं छे तेनुं उत्तर पण ऊपरलाज प्रश्नोत्तरमां छे के भूखतरस नहि सही शकाय तो लोको जागे के तरत जनुं एम ओघभाष्यमां छे. 944 विचार ५९ मो. प्रश्न:- - औषधादिकनी संनिधि करवी कल्पे के नहि ? उत्तरः- उत्सर्गे न कल्पे पण कारणे कल्पे पण खरी. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के ज्यां आठ गाऊनी अंदर गामगोठ न होय एवा स्थळमां कोइ जग्यामां रहेता त्यां उतावळं काम पडतां ओसड मळी शके नहि माटे सां मुनिए ओसडो साथै राखवां तथा कोई साधु ग्लान होतां तथा रस्तो उतरतां तथा दुर्भिक्षमां तथा अणसण करनारना माटे इत्यादि कारणे यतनाए ओसडो राखवा. तेनी यतना ए के सांकडा मुखवाळा वासणमां ओसडो नाखी तेना ऊपर चामडुं के मजबूत कपडो बांधवो, अथवा शरावळं ढांकी मीणथी, छाणथी, के माटीथी सांधा बंध करी अलग राखी मेलवा. कदाच ऊंदरनुं भय होय तो सीकुं बांधी अधर टांगवा. कदाच शीका ऊपर पण ऊंदरो ऊतरे तो बच्चे टीकरुं बांधी लें अथवा शीका ऊपर कादव लगावी कांटा चोडी मेलवा अथवा वासण ऊपर कांटा राखवा. कोई ओसड वासणमांथी गळी पढे वो संभव होय तो नीचे राख पाथरवी ए यतना जाणवी. आ ते अगीआर छेदग्रंथोमां अपवादे ओसडोनी संनिधि करवा लख्युं छे. +9144
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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