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________________ शतपदी भाषांतर. ( ७३ ) बावत अपवादनी देशना पण करवी पण ते कारणो शिवाय संविनभावित तथा असंविग्रभावित श्रावको आगल शुद्ध आहार वोराववानी देशना देवी. विचार ५२ मो. प्रश्न:-तुंबडामां कंठक एटले कांठो केम शीवो छो ? उत्तरः-केटलाक तुंबडामां तो सहज पण कांठो होय छे. अने जेमा सहजे नहि होय तेमां कांठो शीवाय छे त्यां एम जाणवानुं छे के तुंबडं कंइ औधिक उपकरण नथी किंतु भौपग्रहिक छे अने ते संयम साचववामां मददगार होवाना कारणे अपवादे रखाय छे सारे अपवादे तेनी परिकर्मणा पण थइ शकशे. केमके निशीथभाष्यमां औषि उपकरणनी पण उत्सर्गे तथा अपवादे परिकर्मणा लखेल छे त्यारे औपग्रहिक विषे शुं पूछबु. विचार ५३ मो. . प्रश्नः-घडा, त्रपणी वगेरामां दोरो केम बांधो छो? . . उत्तरः-ए उपकरणो पण अपवादे राखवाना छे अने वे जो वगरदोरे वापरी शकाता होय तो ठीकज छे. अगर तेम नहि तो दोरो पण औपग्रहिक उपकरणमा राखी शकाय छे. कारण के दरेक औपग्रहिक उपकरण माटे "वधारामां जे कंइ तप संयमने मददगार उपकरण होय ते औपग्रहिक जाणवू"ए वाक्य लागुज पडे छे.
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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