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________________ शतपदी भाषांतर. ( ६३ ) साथै आकाश मार्गे वैरस्वामी - फूल लइ आव्या" ते वातनुं आलंबन पण लइ शकाय नहि कारण के इहां जेम शासननी प्रभावनाना निमित्ते वैरस्वामी फूल लाव्या तेम तेज कारणे गीतादिकनो पण निषेध नथी कर्यो. माटे आवा शासन प्रभावक महापुरुष साथे आजकालना यतिओनी स्पर्द्धा केम थइ शक्रे विचार ४१ मो. प्रश्नः - मासकल्पनुं न्यूनाधिकपणुं तथा क्षेत्रातिक्रम एटले क्षत्रनुं उल्लंघन करतुं कल्पे के नहि. उत्तरः- उत्सर्गे नहि कल्पे, पण कारणवशे कल्पे पण खरं. निशीथचूर्णिमां लख्युं छे के निःकारणे मासकल्प तोडतां प्रायश्चित्त लागे पण व्याघातना कारणे मासकल्प तोडी अन्यक्षेत्रे जतां दोष नथी ते कारणो ए के मरकीवाळं क्षेत्र होय, अथवा त्यां सजायध्यान करी शकातुं नहि होय, अथवा उपधि के लेप मळता न होय, अथवा नीचेना सात आगाढ कारणोमांनु कोइ कारण होय, ते सात कारणो ए के द्रव्यथी त्यां जोड़ती चीज मळती नहि होय, क्षेत्रथी बहु सांकडं क्षेत्र होय, काळथी सां कंइ उपद्रव होय, भावथी ग्लानादिकने अडचण पडती होय, पुरुषथी आचार्यादिकने त्यां सवळ पडतुं न होय, तथा सां वैद्यो नहि होय, अथवा त्यां सहायक एटले मददगारो नहि होय, ए सात कारणे मासकल्प तोडतां पण दोष नथी. पर्युषणाकल्पभाष्यमां लख्युं छे के ऋतुबद्धकाळमां प्रतिमाधर मुनि एक क्षेत्रमां एक अहोरात्र रहे, यथालंदक पांच अहोरात्र रहे, जिनकल्पी तथा परिहारिक एक मास रहे, अने स्थविरकल्पी नि:
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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