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________________ शतपदी भाषांतर. (५५) प्रना अक्षरोनो पण निर्वाह थइ शके छे. वळी इहां एक बीजो विचार करवो घटित छ के आपणमा पहेलुं पौषध लेवाय छे अने पछी पचखाणना अवसरे तप लेवाय छे, ए वात प्रसिद्धज छे. तेमज द्रव्यपोसहमां पण पहेलो पौषधनी क्रियानो अंगीकार कराय छे अने पछी अठम भक्त लेवाय छे. एम ज्ञाता सूत्रमा अभयकुमारना प्रसंगमा लखेल बिना ऊपरथी जणाय छे. छतां नंदमणियारे तेथी विपरीत कयु छे. तेथी एम जाणवाने कारण मळे छे के नंदमणियारे मिथ्यात्व पाम्या पछी ए क्रिया करी छे. अने मिथ्यात्वीनी क्रिया सम्यक् होवानी भजना छे तेथी तेमां शी आस्था करी शकाय? (४) वळी वसुदेवहिंडिमां विजयसेन राजानी वातमा लख्यु छे के राजा ऊपर वीजली पडवानी छे एम निमित्तिआए जणावतां मंत्रिए राजाना सिंहासनपर एक मूर्ति स्थापी राजाने धर्मपरायण रहेवा जिनमंदिरमा मोकलाव्यो. त्यां राजा सातदिन मूधी पोसह पाळतो थको रह्यो. सातमा दहाडे बपोरे वीजळी स्थापेल मूर्ति ऊपर पडतां राजा पोसहशाळाथी घरे आव्यो. ___इहां ए उत्तर छे के ए राजाए कंइ पौषधवत नथी कर्यु किं. तु उपसर्ग निवारवा माटे उपसर्गनी हद सूधी पोसहनी क्रियानो अंगीकार करवा रूप अभिग्रह को छे कारण के सातमा दिने बपोरेज उपसर्ग दूर थतां पोसहशाळाथी बाहेर नीकल्यो एम कडं छे माटे पौषधव्रत होय तो ते कंइ बपोरे पूरुं थाय नहि. बाकी उपसर्ग सूधी धारेलो पौषधनो अभिग्रह पूर्ण थयो छे. कोइ पूछे के त्यारे पोसह पाळतो थको एनो केम अर्थ क. रवो तेनुं ए उत्तर छे के जेम भरत वगेरा अविरतिओना अधिकारमा पौषधिक ए शब्दनो अर्थ अंगीकार करी छे पौषधक्रिया
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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