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________________ शतपदी भाषांतर. (५१) तिम. अनेकांगिक ते द्रुमादिकनो जाणवो. (२) व्यवहारना पीठमा कयुं छे के रुतुबद्धकाळमां निःकारण संथारा ऊपर सूए तथा पीठफलकादिक वापरे तेने अवसन्नो जाणवो. (३) “राजाए लावेला सिंहानपर बेशीने अथवा भगवान्ना पादपीठ ऊपर बेशीने गणधर देशना आपे" ए दाखलाथी पी. ठादिकनो परिभोग सिद्ध करी शकाय तेम नथी. कारण के ए. तो गणधर महाराजनो कल्प छे तथा तेओना माटे अनुज्ञा छ पण कंइ बीजा आचार्यो माटे नथी. वळी गणधरोने पण समवसरणमांज अने राजाए लावी आपेलज सिंहासन अनुज्ञात की छे. संयतोए लाथी आपेलनी वात नथी. (४) व्याख्यान अवसरे पण कंबळमय निषद्या करवी कहेल छे. जे माटे निशीथचूर्णिमां लख्यु छे के सूत्रमंडळीमां निषद्या करवानीज भजना छे एटले के कराय पण अने नहि पण कराय. जो कराय तो सां सर्व शिष्योए एकेक कांबली देवा बाबतमां पण भजना छे एटले के तेम पण कराय अने बीजी रीते पण कराय. जो निषद्या नहि कराय तो एक कपडापर बेशी गुरु वाचना आपे. . अर्थमंडळीमां नक्की निषद्या करवी अने जेटला सांभळनार होय ते बधाजणे पोतानां कपडां के कांबळीओ देवी. कदाच थो. डा सांभळनार होय तो बीजानी मागी लइ देवी. तेनावडे एक स्थापनानी अने बीजी गुरुनी निषद्या करवी. (५) वळी आचार्यनो संथारो जमीनथीत्रण हाथ ऊंचो करवो कल्पमां कह्यो छे कारण के तेथी ओछो होय तो सर्पनुं भय रहे. त्यां पण चूर्णिकारे वर्षाकाळमांज तेम करवानु जणाव्यु छे. .. (६) कोइ पूछे के दशाश्रुतस्कंधमां कह्यु छे के मासिकम:
SR No.022231
Book TitleShatpadi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasinhsuri
PublisherRavji Devraj Shravak
Publication Year1895
Total Pages248
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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